
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर : संपत्ति में बेटियों के अधिकार को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बेटी अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा या दावा नहीं कर सकती, अगर पिता की मृत्यु 17 जून 1956 (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 लागू होने की तिथि) से पहले हुई हो।
यह फैसला न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने सुनाया है, जिसमें उन्होंने निचली अदालतों के निर्णय को बरकरार रखा। हाई कोर्ट ने बताया कि 1956 से पहले हुए उत्तराधिकार के मामलों में हिंदू मिताक्षरा कानून लागू होता है।
इसके अनुसार यदि किसी हिंदू पुरुष की मृत्यु 1956 से पहले हुई थी, तो उसकी संपत्ति (पैतृक या स्व-अर्जित) पूरी तरह से उसके बेटे को हस्तांतरित हो जाती थी। मिताक्षरा कानून के तहत बेटी केवल तभी संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकती थी, जब पिता का कोई पुरुष वारिस (बेटा) जीवित न हो।
कोर्ट ने अपने फैसले को सुप्रीम कोर्ट के अरुणाचला गौंडर बनाम पोन्नुसामी (2022) सहित अन्य फैसलों पर आधारित बताया, जिन्होंने इस कानूनी स्थिति को दोहराया है। बिलासपुर हाई कोर्ट का यह फैसला पैतृक संपत्ति और 1956 से पहले हुई मृत्यु के संदर्भ में है।
स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में पिता वसीयत के माध्यम से किसी को भी संपत्ति दे सकते हैं। 2005 के संशोधन के बाद बेटियां भी पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर की सहदायिकी मानी जाती हैं, लेकिन यह संशोधन 1956 के बाद हुए उत्तराधिकार पर लागू ही होता है।