कांस्टेबल बोला- पुत्री मेरी नहीं, मैं एचआईवी संक्रमित; हाई कोर्ट ने कहा- भरण-पोषण देना होगा
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक कांस्टेबल की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपनी पत्नी और बेटी द्वारा दायर भरण-पोषण आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा।
Publish Date: Mon, 28 Jul 2025 09:07:33 AM (IST)
Updated Date: Mon, 28 Jul 2025 09:07:33 AM (IST)
भरण-पोषण मामले में हाई कोर्ट का बड़ा फैसला।HighLights
- भरण-पोषण मामले में हाई कोर्ट का बड़ा फैसला।
- हाईकोर्ट ने फैमली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
- कांस्टेबल की याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज किया।
नईदुनिया, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक कांस्टेबल की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपनी पत्नी और बेटी द्वारा दायर भरण-पोषण आदेश को चुनौती दी थी। अदालत ने स्पष्ट कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश पूरी तरह वैध है और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
क्या था कांस्टेबल का तर्क?
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा कि बच्ची उसकी पुत्री नहीं है और वह स्वयं एचआईवी संक्रमित है, जिसके इलाज में भारी खर्च आता है। ऐसे में भरण-पोषण देना उसके लिए आर्थिक बोझ होगा।
मामले की पृष्ठभूमि
कांस्टेबल वर्तमान में कोण्डागांव जिला पुलिस बल में पदस्थ है। उसकी पत्नी ने फैमिली कोर्ट में धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी। याचिका में पत्नी ने 30,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग की और पति पर शारीरिक प्रताड़ना, छोड़ देने और बेटी की देखरेख न करने जैसे आरोप लगाए।
फैमिली कोर्ट का फैसला
फैमिली कोर्ट अम्बिकापुर ने 9 जून 2025 को फैसला सुनाते हुए पत्नी की भरण-पोषण की मांग को अस्वीकार कर दिया, लेकिन छह वर्षीय बेटी के पक्ष में 5,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश पारित किया। कोर्ट ने कहा कि बच्ची की परवरिश और शिक्षा के लिए यह सहायता जरूरी है।
हाई कोर्ट में चुनौती
कांस्टेबल ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। उसका कहना था कि बच्ची उसकी संतान नहीं है, वह एचआईवी संक्रमित है और इलाज में भारी खर्च आता है, इसलिए भरण-पोषण देना व्यावहारिक नहीं है।
हाई कोर्ट का निर्णय
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकलपीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश दोनों पक्षों के साक्ष्यों पर आधारित है। आदेश में कोई त्रुटि नहीं है और याचिकाकर्ता के आरोप प्रमाणित नहीं हुए। अदालत ने कहा कि बेटी को भरण-पोषण देना पिता की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है।
अंतिम आदेश
हाई कोर्ट ने कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा।