
धीरेंद्र सिन्हा/बिलासपुर। Dauna Plant
गांवों में घरों के आंगन में तुलसी के पौधे के साथ ही स्थान पाने वाला दौना धीरे-धीरे लुप्त हो गया। पिछले तीन वर्षों से शोध में जुटे विज्ञानियों ने इसके गुणों की पहचान की है। उम्मीद की जा रही है कि दौना एक बार फिर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल कर सकेगा। कोरोना महामारी के बीच प्रकृति के प्रति हमारा लगाव बढ़ा है। शोध में दावा किया गया है कि इसमें एक विशेष गंध होती है। इससे सांप, मच्छर व अन्य जहरीले कीड़े-मकोड़े इसके आसपास नहीं भटकते।
गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र विभाग में औषधीय पौधों को लेकर पिछले तीन वर्षों से शोध जारी है। इस बीच पता चला है कि औषधीय पौधे के रूप में नजर आने वाला दौना अब घर व आंगन से लुप्त हो चुका है। विरले ही नजर आता है। वनस्पति विभाग के प्रोफेसर डा. अश्वनी दीक्षित व शोधार्थी सतीश दुबे इस पर लगातार आंकड़े भी जुटा रहे हैं। प्राथमिक आंकड़ांे के आधार पर बताया गया कि इस पौधे के भीतर पोलीफेनाल्स और फ्लावोन्स पाए जाते हैं। इसके कारण इसमें एक विशिष्ट गंध होती है। मनुष्य यदि इसका सीधा सेवन करे तो शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। लेप के रूप में इस्तेमाल होता है। वहीं इसकी गंध ज्यादा कारगर है।
पर्यावरण के लिए अनुकूल
बताया गया कि दौना मरुआ बनतुलसी या बबरी की जाति का एक पौधा है। यह पर्यावरण का रक्षक है। वातावरण में आक्सीजन की कमी को पूरा करता है। इसका वानस्पतिक नाम आरगैनो मारूजाना है। यह गर्म प्रकृति का होता है। इसका पौधा डेढ़ से दो फीट ऊंचा होता है। इसमें तुलसी की भांति मंजरी निकलती है जिसमें नन्हें-नन्हें सफेद फूल लगते हैं। इन्हीं में बीजकोश निकलते हैं।
कफ, वात व कृमि रोग नाशक
छत्तीसगढ़ में दौना को बहुउपयोगी माना जाता है। यह कडुआ, रुखा, तीखा, पित्तवर्धक, कफ और वात का नाशक, विष, कृमि और कुष्ठ रोग नाशक माना गया है। दर्द निवारक है। इसके पत्ते, बीज, डंठल और जड़ें सभी लेप आदि के रूप में बहुउपयोगी है। गांव के कई घरों में तुलसी के साथ रक्षक के रूप में इसे विशेष दर्जा प्राप्त है।