सिर्फ 'I Love You' कहने का मतलब यौन उत्पीड़न का इरादा नहीं, हाई कोर्ट की टिप्पणी
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने पाक्सो और एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज एक मामले में आरोपी युवक को बरी कर दिया है। पीड़िता ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि स्कूल से लौटते समय आरोपी ने उसे देखकर ‘आई लव यू’ कहा था।
Publish Date: Sat, 26 Jul 2025 09:10:35 AM (IST)
Updated Date: Sat, 26 Jul 2025 09:21:58 AM (IST)
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के मामले सुनाया बड़ा फैसला(फाइल फोटो)HighLights
- छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के मामले सुनाया बड़ा फैसला ।
- पाक्सो और एससी/एसटी एक्ट मामले में आरोपी को किया बरी ।
- कोर्ट ने कहा कि सिर्फ ‘आई लव यू’ यौन उत्पीड़न नहीं होता।
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट(Chhattisgarh High Court verdict) ने पाक्सो(POCSO Act) और एससी/एसटी एक्ट(SC/ST Act case) के तहत दर्ज एक मामले में आरोपी युवक को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अभियोजन की कमजोर विवेचना पर नाराजगी जताते हुए कहा कि घटना में न तो यौन उद्देश्य साबित हुआ और न ही पीड़िता की उम्र साबित करने के पर्याप्त साक्ष्य पेश किए गए।
जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया और राज्य शासन की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरोपी द्वारा सिर्फ ‘आई लव यू’(I Love You case) कहने की घटना को यौन उत्पीड़न(sexual harassment ) की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, जब तक कि यौन उद्देश्य स्पष्ट न हो।
पीड़िता की गवाही से नहीं साबित हुआ यौन उत्पीड़न
पीड़िता और उसकी सहेलियों की गवाही से यह साबित नहीं हुआ कि आरोपी का व्यवहार यौन इरादे से प्रेरित था। मामला धमतरी जिले के कुरूद थाना क्षेत्र का है। पीड़िता, जो उस समय 15 वर्ष की थी, ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि स्कूल से लौटते समय आरोपी ने उसे देखकर ‘आई लव यू’ कहा। छात्रा का आरोप था कि युवक पहले से उसे परेशान करता था।
शिकायत पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ धारा 354डी (पीछा करना), 509 (लज्जा भंग), पाक्सो एक्ट की धारा 8 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(वीए) के तहत मामला दर्ज किया था। ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी कर दिया था, जिसे राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि एक बार ‘आई लव यू’ कहने मात्र से न तो यह यौन उत्पीड़न है और न ही छेड़छाड़। अभियोजन न तो पीड़िता की उम्र साबित कर सका और न ही यौन इरादा या बार-बार पीछा करने की बात। ऐसे में आरोपी को दोषी ठहराना संभव नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के फैसले अटॉर्नी जनरल फॉर इंडिया बनाम सतीश (2021) का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि पाक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न तभी माना जाएगा, जब उसमें यौन मंशा हो, न कि केवल किसी कथन से। इसके अलावा, यह भी सिद्ध नहीं हो सका कि आरोपी को छात्रा की जाति की जानकारी थी, इसलिए एससी/एसटी एक्ट लागू नहीं होता।
इन तथ्यों के आधार पर हाई कोर्ट ने राज्य की अपील खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार रखा।