
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: देशभर के हाई कोर्ट में सुरक्षित रखे गए फैसलों पर अब अनिश्चितकालीन इंतजार नहीं करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि सुरक्षित रखे गए मामलों पर तीन महीने के भीतर निर्णय सुनाया जाना अनिवार्य होगा। इस ऐतिहासिक आदेश से छत्तीसगढ़ के 1,378 व्याख्याताओं की उम्मीदें फिर से जाग उठी हैं, जो वर्षों से प्राचार्य पदोन्नति के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह ने हाल ही में एक याचिका की सुनवाई के बाद देशभर के हाई कोर्ट को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसमें कहा गया है कि सुरक्षित रखे गए फैसलों पर अधिकतम तीन माह में निर्णय देना होगा। अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी मामले में केवल कार्यकारी भाग का निर्णय सुनाया गया है, तो पांच दिनों के भीतर उसके कारणों का उल्लेख भी जरूरी होगा।
मसलन हाई कोर्ट के बेंच ने किस मामले में कब फैसला सुरक्षित रखा, रिजर्व फार आर्डर के कितने दिनों बाद अपना फैसला सुनाया और इसे कब वेबसाइट पर अपलोड किया। अलग-अलग और साफ-साफ तारीखों का उल्लेख करना होगा।
इस आदेश का सीधा असर छत्तीसगढ़ के 1,378 व्याख्याताओं पर पड़ने वाला है, जिनकी पदोन्नति का मामला लंबे समय से हाई कोर्ट में लंबित है। राज्य सरकार ने शिक्षकों के प्रमोशन के लिए ई और टी संवर्ग बनाया था। जहां ई संवर्ग के व्याख्याताओं को पहले ही प्राचार्य पद पर पदोन्नति मिल चुकी है, वहीं टी संवर्ग के शिक्षकों का मामला अब भी अटका हुआ है। इनमें कई ऐसे व्याख्याता हैं जो रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके हैं।
शिक्षा विभाग के अनुसार हर माह लगभग 25 से 30 व्याख्याता सेवानिवृत्त हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद अब इन शिक्षकों को उम्मीद है कि न्याय की प्रक्रिया तेज होगी और वर्षों से लंबित पदोन्नति का मार्ग जल्द साफ होगा।
1,378 व्याख्याताओं की याचिका लंबे समय से कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब उन्हें उम्मीद है कि फैसला जल्द आएगा और प्रमोशन प्रक्रिया पूरी होगी। शिक्षा विभाग में पदोन्नति की यह फाइल कई महीनों से अटकी हुई थी, लेकिन अब कोर्ट की डेडलाइन से प्रक्रिया में तेजी आने की संभावना है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी झारखंड हाई कोर्ट में क्रिमिनल अपील का फैसला तीन साल तक सुरक्षित रखा गया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि इतने लंबे समय तक फैसला सुरक्षित रखना न्याय में देरी है, जो अस्वीकार्य है। इसी मामले से प्रेरित होकर सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के हाई कोर्ट को स्पष्ट गाइडलाइन जारी की है।
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अब हर कदम होगा पारदर्शी सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि हाई कोर्ट को अपनी मौजूदा प्रणाली में बदलाव कर पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी। इसमें यह दर्ज किया जाएगा कि निर्णय कब सुरक्षित रखा गया, कितने दिन बाद सुनाया गया और वेबसाइट पर कब अपलोड हुआ। इससे जनता और याचिकाकर्ताओं को पूरी प्रक्रिया की जानकारी आसानी से मिल सकेगी।