दंतेवाड़ा। बैलाडिला में कभी डायनासोर विचरण करते थे और इलाके में उनका आहार फर्न ट्री बहुतायत संख्या में रही। इस बात प्रमाण यहां मौजूद फर्न ट्री है। विलुप्त होता यह पौध अब यहां सीमित दायरे में बचे हैं। भांसी इलाके में आज भी फर्न ट्री के सैकड़ो पौधे मौजूद है।
पहाड़ी में लगातार लौह अयस्क खनन से इसके अस्तिव पर खतरा बढ़ गया है। हालांकि पर्यावरण मंत्रालय में निक्षेप 4 में अभी खनन पर रोक लगा दी है। इधर वन और एनएमडीसी भी इसके संरक्षण- संवर्धन की बात कह रहा है लेकिन पुख्ता इंतजाम का अभाव नजर आ रहा है। तेज बहाव वाले नाले से हो रहे कटाव भी पौधे के अस्तिव के लिए खतरा है।
एनएमडीसी खदान के तराई क्षेत्र मे बचेली से करीब 20 किमी दूर डायनासोर जीवन काल के पौधे आज भी जीवित हैं। ऐसा माना जाता है कि ये फर्न ट्रीन शाकाहारी डायनासोर का आहार होता था। करीब 33 हेक्टेयर में क्षेत्र में 100 से अधिक फर्न ट्री के पौधे मौजूद है।
फिलहाल यहां किसी तरह का खनन नहीं हो रहा है। लेकिन इलाका निक्षेप 4 के तहत आता है और यहां खनन के लिए अनुमति मांगी जा रही है। इससे पहले पर्यावरण मंत्रालय में नवंबर- दिसंबर में सर्वे के बाद अनुमति आवेदन को रद्द कर दिया था। यदि एनएमडीसी की ज्वाइंट कंपनी की आवेदन पर खनन की अनुमति मिलती है तो विलुप्त प्रजाति के फर्न ट्री के पौधों का आस्तिव खत्म हो जाएगा।
इनसे भी खतरा है पौधों को
बचेली रेंज के कंपार्टमेंट 3-4 में स्थित इस इलाके में 100 से अधिक फर्न ट्री के पौधे हैं। जिनकी ऊंचाई पांच से 20 फीट तक है। इनकी उम्र हजारों साल बताई जाती है। इस क्षेत्र से एक नाला बहता है, जिसके कारण मिट्टी का कटाव भी हो रहा है। वहीं आकाशनगर के घरों की गंदगी और खदान से बहने वाले अपशिष्ट भी बारिश में इस नाले के पानी के साथ इलाके में पसर जाता है। इतना ही नहीं फर्न ट्री के ऊपर से विद्युत लाइन भी गुजर रही है। यह भी विलुप्त होते पौधे के लिए खतरनाक हो सकता है।
क्या है फर्न ट्री
नुकिले और लंबी पत्ती वाले फर्न का वानस्पतिक नाम एस्पैरेगस स्प्रैंगरी है। जड़, तने व पत्ते वाले खूबसूरत फर्न की एक खासियत है कि यह फूलविहीन होता है, पर सुंदर कोमल पत्तियां होती है। जानकारों के अनुसार यह पौधे डायनासोर युग में अधिक हुआ करती थी। अब विलुप्ति के कगार पर हैं। बस्तर के बैलाडिला पहाड़ी के क्षेत्र विशेष में इसके पौधे हैं। जिन्हें संरक्षित क्षेत्र बनाया गया है। माना जाता है कि बैलाडिला में भी शाकाहारी डायनासोर का रहवास था। क्योंकि शाकाहारी डायनासोर का मुख्य आहार फर्न की पत्तियां होती थी। माना जा रहा है कि बैलाडिला की तराई में विशेष जलवायु और तापमान के चलते आज भी हजारों साल से ये पौधे जीवित हैं।
ज्वाइंट कंपनी चाहती खनन करना
जानकारी के अनुसार निक्षेप-चार में 570.10 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन और करीब 99 हेक्टेयर आउट साइडिंग के लिए है। इसमें करीब 33 हेक्टेयर में फर्न ट्री हैं। जो की विलुप्त होती प्रजाति के पौधे है। इसे संरक्षित क्षेत्र भी घोषित किया गया। माना जा रहा है कि इसी के लिए पर्यावरण मंत्रालय यहां खनन की अनुमति देने से बच रही है। जबकि एनएमडीसी की ज्वाइंट कंपनी, वन और पर्यावरण मंत्रालय को क्लीयरेंस के लिए लगातार पत्राचार कर रहा है। 24 अक्टूबर 2016 को राज्य पर्यावरण विभाग के अधिकारी और मंत्रालय स्तर के अधिकारी स्थल अवलोकन कर समीक्षा कर चुके हैं। इसके बाद पर्यावरण मंत्रालय में 28 फरवरी 2017 को एनएमडीसी के प्रस्ताव को रिजेक्ट कर दिया।
हो रहा संरक्षण- संवर्धन का काम
''फर्न ट्री एरिया डिपाजिट-4 में है। जहां अभी खनन प्रतिबंधित है। पौधों के संरक्षण- संवर्धन के लिए लगातार काम हो रहे हैं। एरिया में मवेशी और लोगों को वहां जाने से रोकने फेंसिंग किया गया है। आगे भी इसकी सुरक्षा के लिए काम किया जाएगा।
-अरूण कुमार शुक्ल, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, एनएमडीसी
विलुप्त प्रजाति के पौधों की सुरक्षा जरूरी
''बचेली रेंज के कंपार्टमेंट 3 व 4 में फर्न ट्री के 100 से अधिक पौधे हैं। इसकी सुरक्षा के लिए वन विभाग कार्य कर रहा है। यहां खनन के लिए मांगी गई अनुमति को पर्यावरण मंत्रालय ने साल भर पहले निरस्त कर दिया है। विलुप्त प्रजाति के पौधे की सुरक्षा जरूरी है।
-आरआर पटेल, रेंज अफसर, वन विभाग