
नईदुनिया प्रतिनिधि, जगदलपुर। विदेशी फिल्म में काम करने वाले बस्तर के पहले आदिवासी कलाकार चेंदरू मंडावी की तीसरी पीढ़ी भी रूपहले पर्दे पर अभिनय की छाप छोड़ने को तैयार है। नारायणपुर जिले के ग्राम गढ़बेंगाल के चेंदरू के रिश्ते में भाई पद्मश्री पंडीराम मंडावी और नाती बलदेव मंडावी के साथ ही गढ़बेंगाल और आसपास के गांवों के कुछ और कलाकार फिल्मकार अमलेश नागेश की छत्तीसगढ़ी फिल्म दण्डा कोटुम में अभिनय कर रहे हैं।
फिल्म की काफी शूटिंग पूरी हो चुकी है। नारायणपुर और अबूझमाड़ क्षेत्र में एक माह से अधिक समय से शूटिंग चल रही है। बलदेव मंडावी ने नईदुनिया से चर्चा में बताया कि चेंदरू मंडावी उसके दादा लगते थे। दण्डा कोटुम में बलदेव और उसके पिता पद्मश्री पंडीराम मंडावी की छोटी भूमिका है।
पिता-पुत्र इस बात को लेकर काफी उत्साहित हैं कि चेंदरू जिसके कारण परिवार और गांव को पहचान मिली वहां के लोगों को फिल्म में अभिनय का अवसर मिला है। पंडीराम मंडावी ख्यातिलब्ध शिल्पकार हैं। बलदेव मंडावी भी शिल्पकला में निपुण हैं।
पंडीराम मंडावी बताते हैं कि उन्होंने कभी सपने में नहीं सोचा था कि फिल्म में काम करने का मौका मिलेगा। वह हंसते हुए कहते हैं कि भूमिका छोटी है या बड़ी इससे फर्क नहीं पड़ता। चेंदरू के परिवार की दूसरी-तीसरी पीढ़ी ने भी फिल्म में काम किया यह तो इतिहास में दर्ज हो जाएगा।
चेंदरू मंडावी ने 1956 में स्वीडिश फिल्म द जंगलसागा में बाल कलाकार के रूप में मुख्य भूमिका निभाई थी। इस फिल्म के बाद चेंदरू को द टाइगर ब्वॉय, टार्जन, बस्तर का मोगली आदि उप नामों से भी काफी ख्याति मिली थी। 78 वर्ष की उम्र में 2013 को बीमारी से जूझते हए चेंदरू ने अंतिम सांसे ली थी। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने अगले वर्ष से चेंदरू के नाम से राज्य ग्रामीण पर्यटन पुरस्कार शुरू करने की घोषणा की है।