
अनिमेष पाल, नईदुनिया प्रतिनिधि, जगदलपुर। ओडिशा के मलकानगिरी जिले का पीवी-26 गांव में दस दिन पहले यहां भड़की हिंसा की आग अब शांत हो चुकी है, लेकिन गांव की ज़मीन पर बिखरी राख आज भी उस त्रासदी की गवाही दे रही है। जिन घरों में कभी चूल्हे जलते थे और बच्चों की हंसी गूंजती थी, वहां अब जले हुए खंभे, राख और खामोशी पसरी है। पूरा गांव बेघर हो चुका है। खेतों में खड़ी फसल जला दी गई, घरों में रखे गहने, नकदी और अनाज लूट लिए गए। बिस्तर, बर्तन और फर्नीचर तक नहीं बचे।
दिसंबर की कड़ाके की ठंड में, जब तापमान सात-आठ डिग्री सेल्सियस तक गिर रहा है, बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग तालपत्री और दान में मिले पतले कंबलों के सहारे किसी तरह रात काट रहे हैं। हर सुबह उजड़े आशियानों की ओर देखकर एक ही सवाल मन में उठता है कि अब आगे क्या होगा।
सिर्फ यादें बची
यह हिंसा सिर्फ घरों को नहीं, बल्कि पीढ़ियों की स्मृतियों और उम्मीदों को भी जला दी गई है। गांव के महानंद बैरागी अपने जले हुए मकान की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि कुछ दिन पहले तक यह एक सामान्य गांव था, आज हमारे पास सिर्फ यादें बची हैं।
पीवी-26 कोई साधारण गांव नहीं है। यह पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए विस्थापित हिंदुओं का गांव है। यहां रहने वाले अधिकांश परिवार बंगाली हिंदू हैं, जिनके लिए यह त्रासदी इतिहास के पुराने ज़ख्मों को फिर से हरा कर गई है। सुधीर सिकदार बताते हैं कि 1947 के विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर लगातार हमले हुए। 1962 के दंगों में उनके पूर्वजों के घर जला दिए गए, जान-माल की भारी क्षति हुई और महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार हुए। जान बचाकर वे भारत आए, लेकिन दशकों बाद पीवी-26 में जो हुआ, उसने वही डर और बेबसी फिर सामने ला खड़ी की।
हत्या के बाद भड़की हिंसा
पीवी-26 में हिंसा की शुरुआत पास के आदिवासी गांव राखेलगुड़ा की विधवा महिला लाखे पोडियामी की हत्या से जुड़ी बताई जा रही है। आरोप लाखे की जमीन पर अधिया पर खेती करने वाले सुख मंडल पर लगा। पुलिस ने सुख समेत दो लोगों को गिरफ्तार कर जांच शुरू की, लेकिन इससे आदिवासी समाज का आक्रोश शांत नहीं हुआ। 6 दिसंबर को गांव में तोड़फोड़ शुरू हुई और 8 दिसंबर को हालात भयावह हो गए।
187 में से 167 मकानों को आग के हवाले कर दिया गया। गांव में बमबारी की गई और घरों से सामान लूट लिया गया। मौके पर पहुंचे एसपी विनोद पाटिल और पुलिसकर्मियों पर भी हमला हुआ, जिसमें कई जवान घायल हुए। प्रशासन ने करीब 3.80 करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन किया है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि नुकसान सिर्फ पैसों का नहीं है। बच्चों का भविष्य और पहचान सब कुछ राख हो गया है।
घटना से छत्तीसगढ़ में भी आक्रोश
इस घटना की गूंज छत्तीसगढ़ तक पहुंची है। यहां के बंगाली समुदाय में गहरा आक्रोश है। निखिल भारत बंगाली समन्वय समिति के संभागीय अध्यक्ष जीवानंद हालदार ने पत्रवार्ता में कहा कि यह कहना गलत है कि बांग्लादेशियों के घर जलाए गए। हम बंगभाषी हैं, बांग्लादेशी नहीं। 1947 से पहले हम इसी भारत का हिस्सा थे। विभाजन के बाद हमें शरणार्थी कहा गया और आज फिर हमारी निष्ठा पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
इस दुख की घड़ी में छत्तीसगढ़ के बंगाली समाज ने पीवी-26 के पीड़ितों के लिए सहायता भेजी है। परलकोट क्षेत्र में बसे बंगाली हिंदुओं के 140 से अधिक गांवों के ग्रामीणों ने भी एकजुट होकर पीवी-26 के ग्रामीणों तक सहायता पहुंचाई है।