
नईदुनिया प्रतिनिधि जगदलपुर: तेलंगाना के माओवादी हिंसा पीड़ितों का 30 सदस्यीय दल मंगलवार को बस्तर पहुंचा। यहां एकजुटता दिखाते हुए माओवादी हिंसा के विरुद्ध प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि बस्तर और तेलंगाना में जो लोग शहरों में बैठकर माओवाद का महिमामंडन कर रहे हैं, वही इस आग के असली जनक हैं।
बस्तर पहुंचे दल का सर्वसमाज की ओर से भव्य स्वागत किया गया। दल के सदस्य वेणुगोपाल रेड्डी ने कहा कि ऐसे लोग खुद आरामदायक जीवन जी रहे हैं, उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं, जबकि जंगलों में गुमराह युवाओं के हाथों में बंदूक थमाकर उन्हें मौत की राह पर धकेल रहे हैं।
रेड्डी ने कहा, जो लोग माओवाद के नाम पर इंटरनेट मीडिया में झूठा नैरेटिव गढ़ते हैं, वे न आदिवासी के मित्र हैं, न जनता के। हिंसा से कभी विकास नहीं आता, सिर्फ विनाश मिलता है। उन्होंने आत्मसमर्पित माओवादियों का स्वागत करते हुए अपील की कि जो अभी भी जंगलों में हैं, वे हथियार छोड़कर मुख्यधारा में लौटें। बस्तर और तेलंगाना को शांति की जरूरत है, गोलियों की नहीं।
दल के सदस्यों ने कहा कि तेलंगाना में गिनती के लोग हैं जो माओवादी हिंसा को क्रांति बताकर रैलियां निकालते हैं और मारे गए माओवादियों के पक्ष में प्रोपेगेंडा चलाते हैं। लेकिन ये शहरी समर्थक इंटरनेट के सहारे झूठी कहानियां फैलाते हैं, ताकि देश-दुनिया में माओवाद की झूठी छवि बनाई जा सके। वास्तविकता यह है कि आधी सदी की हिंसा ने न आदिवासी को न्याय दिया, न जीवन की सुरक्षा।
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रांताध्यक्ष राजाराम तोड़ेम ने तेलंगाना के माओवादी हिंसा पीड़ितों की इस पहल का स्वागत करते कहा कि आदिवासी चाहे तेलंगाना का हो या बस्तर का, माओवादी हिंसा का दर्द सबका एक जैसा ही है। अब छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा समाप्ति की ओर है, तो इसे पोषित करने वालों को अब दर्द हो रहा है।
दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के कुख्यात माओवादी नेता रामचंद्र रेड्डी उर्फ गुड्सा उसेंडी और के. सत्यनारायण रेड्डी उर्फ कोसा के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद उनके परिवार की याचिकाओं को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने खारिज कर दिया। बावजूद इसके, तेलंगाना में आयोजित स्मृति सभा में कुछ अर्बन माओवादी नेताओं ने मारे गए माओवादियों का महिमामंडन करने की कोशिश की।
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इस कार्यक्रम में बस्तर की विवादित कार्यकर्ता सोनी सोरी भी शामिल हुईं और उन्होंने माओवादियों के समर्पण को सरकारी सौदेबाजी बताया। माओवादी हिंसा पीड़ितों ने इस रवैये की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि जो लोग शहरी आराम में बैठकर माओवादियों को बलिदानी बताते हैं, वे बस्तर और तेलंगाना की सच्चाई से भाग रहे हैं। अब वक्त है कि बस्तर हिंसा की नहीं, समृद्धि की पहचान बने।