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नईदुनिया न्यूज, बोड़ला। थायराइड कैंसर से जूझ रही पत्नी, चलने-फिरने की शक्ति खत्म, सरकारी मदद सीमित, इलाज महंगा लेकिन पति अब भी उम्मीद के सहारे सफर में है। बोड़ला ब्लॉक के रेंगाखार क्षेत्र के नगवाही गांव में रहने वाले किसान समलू मरकाम अपनी पत्नी कपूरा मरकाम को इलाज के लिए बाइक पर लकड़ी की पटिया बांधकर गांव-गांव, अस्पताल-अस्पताल तक ले जा रहे हैं। दोनों की यह विवशता दिल को झकझोर देती है। आर्थिक संकट ऐसा कि डॉक्टर-हॉस्पिटल और दवाओं के खर्च के सामने जीवन की पूरी कमाई और जमीन भी कम पड़ गई। अब न पैसे बचे, न साधन, पर पति का हौसला टूटा नहीं। उसकी उम्मीद ही उसकी आखिरी पूंजी है।
नगवाही कांटापारा के समलू मरकाम बताते हैं कि पत्नी कपूरा पिछले दो वर्षों से थायराइड कैंसर से पीड़ित हैं। पहले उनके गले का ऑपरेशन रायपुर में हुआ। कुछ महीने की राहत मिली, लेकिन बीमारी फिर फैल गई। अब दोनों पैरों की नसें भी प्रभावित हैं, चलना संभव नहीं। एम्बुलेंस अस्पताल तक ले जाती है, पर आगे की लंबी यात्रा, कई जिलों-शहरों की जांच और वैकल्पिक उपचार के चक्कर में उन्हें मजबूरी में बाइक पर ही पत्नी के लिए लकड़ी की पटिया बाँधकर जगह बनानी पड़ी। समलू का कहना है कि मुंबई, रायपुर, गोंदिया, बैतूल तक भटक आया। गांव वालों ने मदद की, किन्तु इलाज का खर्च बहुत ज्यादा है। पैसे खत्म हो गए। पत्नी को छोड़ नहीं सकता, इसलिए जहां उम्मीद मिलती है, उसे लेकर निकल पड़ता हूं।
कुछ दिन पहले समलू अपनी पत्नी को सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा पाए थे। डॉक्टरों ने इलाज किया, लेकिन तबीयत लगातार बिगड़ती गई। डॉक्टरों ने हाथ उठा दिए और घर ले जाने की सलाह दे दी। लेकिन समलू हार मानने को तैयार नहीं। अब फिर पत्नी को बाइक पर पटिया पर लिटाकर इलाज की आस में घूम रहा है, कभी किसी आयुर्वेदिक स्थान, कभी किसी प्राइवेट क्लिनिक तो कभी कोई शहर जहाँ लोग कहते, वहाँ इलाज हो सकता है।
आर्थिक हालात बिगड़े तो परिवार ने गृहमंत्री विजय शर्मा से मदद मांगी। बीते वर्ष परिवार को 10 हजार रुपये की आर्थिक सहायता मिली और तत्काल अस्पताल में भर्ती भी कराया गया। इलाज हुआ, पर आगे की राह कठिन और खर्चीली। अब फिर दंपती गांव-गांव, दवाखानों-अस्पतालों की धूल छान रहे हैं, क्योंकि कैंसर का इलाज ठहरा, लंबा, कठिन और महंगा।
नगवाही और आसपास के ग्रामीण बताते हैं कि यह दम्पत्ति कई दिनों से सरकारी मदद की आस में दर-दर भटक रहा है। ग्रामीणों ने कहा कि हमने अपने जीवन में ऐसा मार्मिक दृश्य नहीं देखा, पत्नी पटिया पर लेटी हुई, पति उसे बाइक पर संभालते हुए, यह मजबूरी दिल तोड़ देती है। ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से तत्काल आर्थिक और चिकित्सकीय मदद की मांग की है।
समलू खेती-किसानी करके परिवार चलाते हैं। इलाज के चलते खेत, पशु और जमा-पूंजी बिक गई। अब घर में खाने तक की किल्लत है। इलाज कराते-कराते परिवार पूरी तरह टूट चुका है, पर पति ने हिम्मत नहीं छोड़ी। समलू बताते हैं कि जिंदगी भर मेहनत की पर बीमारी ने सब छीन लिया। पैसा नहीं है, पर कोशिश जारी है। बस इतना चाहता हूं एक बार फिर मुंबई जाकर पत्नी का इलाज करा सकूं।
समलू ने बताया कि डॉक्टरों ने तुरंत उन्नत उपचार की सलाह दी है, जिसके लिए बड़े अस्पताल पहुँचना जरूरी है। लागत लाखों में है। उन्होंने शासन-प्रशासन और सामाजिक संगठनों से मदद की अपील की है। ग्रामवासियों का कहना है कि ऐसी विवशता सरकार के सामने बड़ा सवाल है। एम्बुलेंस गांव तक आती है पर अच्छे इलाज तक पहुँचने के लिए व्यवस्था सीमित है। ऐसे में गरीब अपनी बीमार पत्नी को बाइक पर ले जाने मजबूर है।