कोरबा (निप्र)। कुसमुंडा खदान विस्तार परियोजना में 142.257 हेक्टेयर राजस्व वन भूमि समाहित होगी। वन अधिकार नियम के तहत आयोजित इस ग्रामसभा के पहले सामुदायिक व व्यक्ति अधिकारों की प्रक्रिया पूर्ण नहीं की गई है और न ही आदिवासियों व अन्य ग्रामीणों को वन अधिकार पट्टा दिया गया है। इसके बाद भी 16 फरवरी को ग्रामसभा आयोजित की जा रही है। ग्रामीणों को ग्रामसभा आयोजन की संपूर्ण जानकारी नहीं देने पर कर्ई सवाल खड़े हो गए हैं।
एसईसीएल कुसमुंडा खदान की उत्पादन 62 मिलियन टन करने की पर्यावरणीय स्वीकृति मिल चुकी है। वन भूमि अधिग्रहण के लिए प्रबंधन ने जिला प्रशासन से अनापत्ति प्रमाणपत्र मांगा है। इस पर अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) वीरेंद्र बहादुर पंचभाई ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत कटघोरा को पत्र लिख कर 16 फरवरी को ग्रामसभा आयोजित कराने कहा है। पत्र में कहा गया है कि कुसमुंडा विस्तार परियोजना के लिए 142.257 हेक्टेयर राजस्व वन भूमि के डायवर्सन प्रस्ताव पर आदि जाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम (एफआरए) 2006 के अंतर्गत ग्रामसभा कर संपूर्ण कार्रवाई पंजी सहित उपलब्ध कराना है। वन भूमि के लिए ग्रामसभा आयोजित कराने पर कई सवाल खड़े हो गए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि वन अधिकार नियम के तहत ग्रामसभा के पहले व्यक्ति अधिकारों की प्रक्रिया पूर्ण नहीं की गई है। इसी तरह आदिवासियों व अन्य ग्रामीणों को वन अधिकार पट्टा नहीं दिया गया है। इसके बाद भी ग्रामसभा आयोजित कराना वन अधिकार नियम का उल्लंघन है। ग्रामसभा के पूर्व ग्रामीणों को विस्तृत रिपोर्ट भी नहीं सौंपी गई है, ताकि सभा में अपना पक्ष रख सकें। विस्तार परियोजना में रिसदी, पड़निया, पाली, जटराज, सोनपुरी की जमीन अधिग्रहित की जा रही है। वहीं प्रबंधन ने 18.75 एमटी से 26 एमटी उत्पादन ब़ढ़ाने की अनुमति मिलने पर वर्तमान वित्तीय वर्ष में खदान की उत्पादन क्षमता बढ़ा दी है। इसके बाद जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है।
क्या है नियम
वन अधिकार अधिनियम के परिपालन के लिए वर्ष 2009 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एक दिशा निर्देश जारी किया है। इसमें स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि जब तक वन अधिकार नियम की धारा 3 (1) (ड) (झ) के अंतर्गत सामुदायिक वन संसाधनों का संरक्षण, पुनरूद्दजीवित व संरक्षित या प्रबंध करने का अधिकार की प्रक्रिया जब तक पूर्ण नहीं हो जाती, तब तक डायवर्सन के लिए ग्रामसभा का आयोजन नहीं किया जा सकता है। वन अधिकार कानून की धारा 4 (5) के तहत किसी भी वन भूमि में निवास करने वाली अनुसूचित जनजाति या अन्य परंपरागत वन निवासियों का कोई सदस्य वन भूमि से तब तक बेदखल नहीं किया जाएगा, जब तक मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है।
चार गांव में एक साथ
राजस्व वन भूमि के डायवर्सन के लिए एफआरए के तहत चार ग्राम सोनपुरी, पाली, पड़निया तथा खोडरी (कुल रकबा 22.027 हेक्टेयर) की जमीन के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र मांगा गया है। चारों गांव में 16 फरवरी को ही एक साथ ग्रामसभा आयोजित कैसे होगी। एक स्थान पर 2 से 3 घंटा ग्रामसभा होगी, इसके बाद दूसरे गांव में सभा होगी। प्रशासन द्वारा ग्रामसभा एक साथ कराई जा रही है अथवा अलग-अलग, इस बारे में स्थिति भी स्पष्ट नहीं की गई है।
वर्तमान में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पास कुसमुंडा परियोजना की 205 हेक्टेयर वन भूमि डायवर्सन का प्रकरण स्टेज टू के क्लीयरेंस के लिए लंबित है। विस्तार परियोजना के तहत वर्तमान में चल रही अधिग्रहण की प्रक्रिया के तहत वर्ष 2009 व 2015 को जारी नोटिफिकेशन के अनुसार 184 हेक्टेयर और वन भूमि की आवश्यकता बताई गई है। सर्फ 22 हेक्टेयर के लिए चार ग्राम सभाओं का आयोजन एक ही दिन में आयोजित किया जाना समझ से परे है।
- लक्ष्मी चौहान, सचिव, सार्थक
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