
महासमुंद। 23 साल पहले छह जुलाई 1998 को अविभाजित मध्य प्रदेश राज्य के 61वें जिला के तौर पर महासमुंद का उदय आज के ही दिन हुआ था।
20 वर्षों के कठिन संघर्ष के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने महासमुंद को जिला घोषित किया। तब यह एमपी का 61वां जिला बना। हालांकि नवंबर 2000 में मध्य प्रदेश का विभाजन हुआ और महासमुंद छतीसगढ़ राज्य का हिस्सा बना।
23 साल में हुआ विकास
जिला बनने के बाद महासमुंद का विकास हुआ। रेलपांत दोहरीकरण के साथ बेहतर रेल सुविधा का लाभ मिला। चौकी, थाना बढ़ने से अपराध के प्रभावी नियंत्रण पर काम हुआ। शासकीय योजना से सड़कों का जाल गांव गांव तक बिछा। सिंचाई सुविधाओ में एनीकट, स्टापडैम का निर्माण हुआ।
शिक्षा के क्षेत्र में नए कालेज खुले, स्कूलों खुले, स्कूलों का उन्नायन हुआ। उच्च शिक्षा में मेडिकल कालेज मिला। कृषि महाविद्यालय मिला। वेटनरी पालीटेक्निक मिला। आइटीआइ मिला। न्यायालय के क्षेत्र के नए कोर्ट की स्थापना हुई। जिला मुख्यालय का सुंदरीकरण हुआ, रेलवे ओवरब्रिज निर्माण गतिमान है।
अन्य जिलों से पिछड़ा रहा महासमुंद
1998 में महासमुंद के साथ धमतरी और कवर्धा वर्तमान में कबीरधाम जिला का भी गठन हुआ था। विकास की रफ्तार में महासमुंद इन दोनों जिलों से पिछड़ा रहा। कबीरधाम को पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के गृह जिला होने का लाभ मिला।
वहीं धमतरी की स्वच्छ राजनीति से विकास में तेजी आई। जबकि बुद्धिजीवियों की माने तो राजनीतिक रूप से अधिक सशक्त और लोकसभा मुख्यालय होने के बाद भी महासमुंद जिला का अपेक्षित विकास इन 23 सालों में कवर्धा और धमतरी की अपेक्षा कम रहा।
आज भी जिला मुख्यालय से रायपुर के लिए शाम छह बजे के बाद यात्री बस तलाशने में असुविधा होती है।
बिरकोनी औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना के बाद भी युवाजन रायपुर पर निजी रोजगार के लिए आश्रित हैं। महासमुंद व बागबाहरा में बायपास रोड की मांग अब भी बनी हुई है।
सिंचाई के क्षेत्र में कोमा बांध, शिकाशेर से जिले को सिंचाई परियोजना, नैनी नाला सिंचाई परियोजना अब भी लंबित है। हालांकि लोगो तक प्रशासन की पहुंच सुलभ हुई है। लोग तेजी से जिले में विकास होने की उम्मीद मौजूदा सरकार से लगाए हुए हैं।