राज्य ब्यूरो, नईदुनिया.रायपुर : प्रदेश में शहीद वीर नारायण सिंह आयुष्मान स्वास्थ्य योजना की क्लेम राशि का भुगतान निजी अस्पतालों को नहीं होने का खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ रहा है। निजी अस्पतालों का करीब 800 करोड़ रुपये का भुगतान अटका हुआ है। यह राशि 2024 से लेकर जनवरी-2025 तक की बताई जा रही है। अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को इलाज के लिए जेब से राशि खर्च करनी पड़ रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीब और मजबूर लोगों को इलाज मुहैया कराने के लिए आयुष्मान कार्ड की शुरुआत की थी। केंद्र सरकार की मंशा थी कि पैसे के अभाव में बीमारी से किसी गरीब की जान नहीं जानी चाहिए। प्रदेश में सभी स्वास्थ्य संस्थानों के अलावा 595 निजी चिकित्सालय योजना के अंतर्गत पंजीकृत हैं। बताया जाता है कि योजना के अंतर्गत आने वाली सभी स्वास्थ्य योजनाओं का क्लेम प्रक्रिया भी स्टेट नोडल एजेंसी की ओर से बंद करा दिया गया है।
योजना के हितग्राहियों के निजी अस्पताल में इलाज के आडिट का काम करीब तीन माह से अटका हुआ है। इसकी वजह से स्टेट नोडल एजेंसी के पास इलाज संबंधी क्लेम धड़ाधड़ भुगतान के लिए पहुंच रहे हैं। टीपीए (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) कंपनी टीम के साथ मरीजों के वास्तविक इलाज का निरीक्षण करती है। पुरानी टीपीए कंपनी का काम 30 मार्च को समाप्त हो चुका है और नई से अनुबंध की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है।
बता दें कि निजी अस्पतालों में इलाज व्यवस्था की निगरानी करने का काम स्टेट नोडल एजेंसी की ओर से अनुबंधित कंपनी द्वारा कराया जाता है। कंपनी अपने डाक्टरों की तैनाती पंजीकृत अस्पताल में करती है, जो मरीजों की जरूरत के हिसाब से इलाज का आडिट करती है। आडिट प्रक्रिया में अस्पतालों के माध्यम से किए जाने वाले फर्जी क्लेम पर विराम लगता है।
बेमेतरा निवासी एक मरीज का इलाज राजधानी के रामसागर पारा स्थित एक निजी अस्पताल में चल रहा है। मरीज के स्वजन ने बताया कि आयुष्मान योजना से अस्पताल पंजीकृत है। मरीज को भर्ती करने से पहले अस्पताल प्रबंधन ने 25 हजार रुपये जमा कराए थे। आपरेशन के बाद दोबारा 30 हजार की मांग की जा रही है। अस्पताल के कर्मचारियों से पूछे जाने पर भी कोई जवाब नहीं दे रहे हैं।
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प्रदेश कांग्रेस के चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता का कहना है कि राज्य नोडल एजेंसी की ओर से क्लेम और पेमेंट प्रोसेसिंग कार्य के लिए निविदा आमंत्रित की गई थी। टेंडर में स्टेट नोडल एजेंसी के स्वास्थ्य संचालनालय में आफिस बनाकर कंपनी को क्लेम प्रोसेस करने की शर्त रखी गई है।
इसी वजह से किसी कंपनी ने रूचि नहीं दिखाई। निर्धारित तिथि समाप्त होने के बाद भी टेंडर न ही निरस्त किया गया है और न ही शर्तों में सुधार कोई सुधार हुआ है। निजी अस्पतालों का भी करीब 800 करोड़ का भुगतान विगत वर्ष से अटका हुआ है।