जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली/रायपुर: शैक्षणिक योग्यता के साथ कौशल विकास पर बीते करीब एक दशक से सरकार के ध्यान देने के बावजूद धरातल पर अभी भी स्थिति चिंताजनक दिखाई दे रही है। इंस्टीट्यूट फार कंपटीटिवनेस द्वारा जारी स्किल्स फार द फ्यूचर में आंकड़ों सहित दावा किया गया है। इन आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में 88 प्रतिशत कामगार कम योग्यता स्तर का रोजगार कर रहे हैं।
यदि शैक्षिक कुशलता की बात करें तो बिहार की स्थिति सबसे खराब है, जबकि चंडीगढ़ की स्थिति तुलनात्मक रूप से सबसे बेहतर आंकी गई है। वहीं छत्तीसगढ़ में 92% निम्न कौशल वाले कामगार हैं। वहीं केवल 2.46 प्रतिशत लोग व्यावसायिक कार्य के लिए प्रशिक्षित हैं। इसका मतलब है कि प्रदेश में काम करने वाले लोगों में 92 प्रतिशत कामगार ऐसे हैं, जिनके पास उस काम का सही कौशल नहीं है जो वो कर रहे है। इसका सीधा असर कार्य कुशलता और काम की गुणवत्ता पर पड़ता है।
बता दें कि पिछले दिनों केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमशीलता राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयंत चौधरी ने इस रिपोर्ट को जारी किया। संस्थान ने आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) का विश्लेषण करते हुए भारतीय कार्यबल की संरचना की तस्वीर प्रस्तुत की है। डाटा विश्लेषण पर आधारित रिपोर्ट में पाया गया है कि 2023-24 में लगभग 88 प्रतिशत कार्यबल कम योग्यता वाले व्यवसायों में काम कर रहा है, जबकि केवल 10-12 प्रतिशत कामगार उच्च योग्यता वाली भूमिकाओं में लगे हुए हैं।
गौरतलब है कि देश-प्रदेश में लगातार बेरोजगारी बढ़ रही है। युवक पढ़ का अलग-अलग डिग्रियां घारण कर ले रहें हैं, लेकिन उनके पास किया प्रकार का स्कील नहीं होने के कारण रोजगार नहीं मिल पा रहा है। जिससे बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। योग्यता के अभाव में निजी क्षेत्रों में युवाओं को काम नहीं मिल रहा।
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वहीं दूसरी तरफ निजी क्षेत्रों और उद्योगों का ऐसा कहना है कि उनके पास जो युवा रोजगार के लिए आ रहे हैं वह अपने काम के लिए फिट नहीं है। ऐसे में युवाओं को डिग्री तो मिल रही है, लेकिन योग्यता की कमी से उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है। जो कि पूरे देश के लिए एक बड़ी समस्या है।