रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
उत्तर रीति कालीन काव्यधारा को छत्तीसगढ़ में प्रवाहित करने वाले संस्कृत के महाकवि बाबू रेवाराम रतनपुरिहा गम्मत व रहस के प्रणेता माने जाते हैं। उन्होंने पंचांग प्रकाशित किया, जिस पर काशी के पंडितों ने उन्हें महापंडित की उपाधि देकर सम्मानित किया। यह प्रदेश के लिए गर्व का विषय है। सन् 1812 में जन्मे बाबू रेवाराम हैहयवंशी राजाओं के दीवान थे। जिन्हें सभी सम्मान से बाबूजी कहते थे। इनके व्यक्तित्व में बहुत सारी खूबियां थीं। बाबू रेवाराम महाकवि, धर्म साधक, इतिहासकार, साहित्यकार, नाट्यकार, संगीतकार, खगोल वेक्ता, पंचांग निर्माता, रात्न पारखी, ज्योतिषाचार्य व बहुभाषाविद थे। बुधवार को पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के पंडित दीनदयाल शोध सेवा संस्थान और साहित्य एवं भाषा अध्ययन शाला में बाबू रेवाराम पर संगोष्ठी के दौरान कुलपति प्रो. केशरीलाल वर्मा ने ये बातें बताईं।
13 ग्रंथों की रचना
कार्यक्रम में आए छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी पंडित सुदंरलाल शर्मा शोध पीठ के आचार्य डॉ. रमेन्द्र नाथ मिश्र ने बताया कि 13 बाबू रेवाराम ने ग्रंथों की रचना की। इनमें संस्कृत, हिंदी, ब्रजभाषा, मराठी व उर्दू-फारसी के ग्रंथ हैं। इसमें गीत माधव महाकाव्य संस्कृत भाषा में व रामाश्वमेध यज्ञ महाकाव्य की रचना ब्रजभाषा में की है। इसके अलावा संस्कृत में नर्मदाएटक, गंगालहरी, ब्राह्मण स्त्रोत, सार रामायण दीपिका की रचना की। हिंदी व ब्रज में विक्रम विलास, रत्न परीक्षा, दोहावली, माता के भजन, कृष्णलीला के भजन हैं। बाबूजी ने सबसे पहले रतनपुर का क्रमबद्घ इतिहास लिखा है। जो हैहयवंशी राजाओं की कहानी बताता है।
गम्मत के थे प्रणेता
प्रोफेसर एम ए खान ने बताया कि बाबू रेवाराम लोकप्रिय रतनपुरिहा गम्मत व रहस के प्रणेता माने जाते हैं। उन्होंने गम्मत के लिए गुटका बनाया जिसमें संग्रहित भजन आज भी पूरे भाव से गाया जाता है। यही भजन रहस के दौरान भी गाए जाते हैं। गुटका के भजन शास्त्रीय संगीत पर आधारित हैं। जिसके नीचे राग व ताल का भी उल्लेख किया गया है। नवरात्रि में जो माता सेवा के भजन गाए जाते हैं उनकी भी रचना बाबू रेवाराम ने की थी।
इन विषयों पर किए जा सकते हैं शोध
पंडित की उपाधि क्यों मिली और आज के समय की चुनौतियां।
हैहयवंशी राजाओं के इतिहास का वर्तमान समय में प्रभाव।
भजनों का उद्देश्य और सभ्यता और संस्कृति का समावेश।