
नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। आर्थिक अपराध शाखा (EOW) के तीन अफसरों के खिलाफ फर्जी दस्तावेज तैयार करने और धारा 164 के बयान में छेड़छाड़ करने के आरोप पर शनिवार को सुनवाई हुई। कांग्रेस नेता गिरीश देवांगन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की गई। रायपुर की सीनियर डिवीजन सिविल जज आकांक्षा बेक की अदालत में हुई सुनवाई में दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें पेश की। कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले में अधिकारियों की आपत्ति पर सुनवाई चार नवंबर को की जाएगी।
गिरीश देवांगन ने याचिका में आरोप लगाया था कि ईओडब्ल्यू के अफसरों ने जांच के दौरान निखिल चंद्राकर के धारा 164 के बयान में हेराफेरी और फर्जीवाड़ा किया है। इस शिकायत के बाद अदालत ने तीनों अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। शनिवार को उसी नोटिस पर सुनवाई हुई, जहां दोनों पक्षों की बहस के बाद कोर्ट ने अगली तारीख तय की।
ईओडब्ल्यू की ओर से पैरवी कर रहे वकील रवि शर्मा ने कोर्ट में कहा कि गिरीश देवांगन ने बिना किसी अनुमति या सैंक्शन के यह परिवाद दाखिल किया है। उन्होंने आगे कहा कि गिरीश देवांगन ने शिकायत में कहा है कि निखिल चंद्राकर का बयान (164) सही ढंग से रिकॉर्ड नहीं हुआ, लेकिन इसके लिए उन्होंने कोई साक्ष्य पेश नहीं किया। साथ ही यह भी नहीं बताया कि किस कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय के अनुसार, यदि कोई अधिकारी अपनी ऑफिशियल ड्यूटी के दौरान कार्य करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई से पहले सैंक्शन लेना अनिवार्य होता है। इस केस में ऐसा नहीं किया गया है।
वहीं उन्होंने आगे कहा कि यह पूरी शिकायत राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित है। इसमें राज्य के कुछ बड़े नेताओं का नाम आने की संभावना थी, इसलिए जांच को प्रभावित करने और प्रेस कांफ्रेंस के जरिए राजनीतिक माहौल बनाने के लिए यह परिवाद दाखिल किया गया है। अगर 164 के बयान में कोई त्रुटि होती भी है, तो उसे वही कोर्ट देखता है जहां वह बयान पेश किया गया था। किसी अन्य अदालत को यह अधिकार नहीं है कि वह जांच करे कि बयान सही था या नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि निखिल चंद्राकर ने खुद मजिस्ट्रेट के सामने आवेदन दिया था, ऐसे में पुलिस की भूमिका पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
गिरीश देवांगन की ओर से वकील फैजल रिजवी ने अदालत में कहा कि यह मामला केवल तकनीकी त्रुटि का नहीं बल्कि गंभीर आपराधिक कृत्य का है। उन्होंने कहा कि ईओडब्ल्यू के अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने मिथ्या साक्ष्य तैयार किया, बोगस बयान टाइप कर कार्यालय में तैयार किया और उसी को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया। यह कार्य किसी भी एजेंसी के लिए अपराध की श्रेणी में आता है।
वहीं रिजवी ने कहा कि हमने न्यायालय के समक्ष सुप्रीम कोर्ट के विनोद पांडे प्रकरण का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया था कि यदि कोई एजेंसी झूठे साक्ष्य तैयार करती है, तो उस पर एफआइआर दर्ज की जानी चाहिए। अब अदालत को यह तय करना है कि ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने यह कार्य अपनी ऑफिशियल ड्यूटी में किया या ऑफ ड्यूटी। यदि यह जानबूझकर फर्जी साक्ष्य तैयार करने का मामला है, तो सैंक्शन का सवाल ही नहीं उठता।