नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। माओवाद विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। भाकपा (माओवादी) के शीर्ष पोलित ब्यूरो सदस्यों में शामिल डेढ़ करोड़ के इनामी माओवादी कमांडर भूपति उर्फ अभय उर्फ सोनू ने मंगलवार को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में समर्पण कर दिया है। सूत्रों के अनुसार, भूपति के साथ संगठन के लगभग 60 अन्य सदस्यों ने भी हथियार डाले हैं, हालांकि इस बड़े सामूहिक समर्पण की आधिकारिक पुष्टि की प्रतीक्षा है।
67 वर्षीय भूपति का समर्पण, कई दशकों से भारत में सक्रिय सबसे खतरनाक माओवादी कैडरों में से एक का मुख्यधारा में लौटना है। तेलंगाना के पेद्दापल्ली जिले के निवासी और बी.काम डिग्रीधारी भूपति माओवादी आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा था। वह न केवल केंद्रीय समिति का सदस्य था, बल्कि माओवादियों की केंद्रीय सैन्य आयोग में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि भूपति का भाई किशनजी (2011 में मुठभेड़ में मारा गया) भी एक प्रमुख माओवादी था और उसकी पत्नी तारक्का एवं भाभी सुजाता भी पहले ही आत्मसमर्पण कर चुकी हैं।
सुरक्षा और पुलिस सूत्रों का कहना है कि यह आत्मसमर्पण माओवादी संगठन की कमर तोड़ने वाला साबित हो सकता है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब कुछ हफ़्ते पहले ही संगठन के आधिकारिक लेटरहेड पर भूपति (प्रवक्ता अभय के नाम से) ने हथियार छोड़ने और सरकार के साथ शांति वार्ता शुरू करने की पेशकश की थी। इस पत्र को माओवादी संगठन के भीतर बढ़ती टूट और निराशा का संकेत माना जा रहा था। यह भी सामने आया था कि संगठन के भीतर आत्मसमर्पण को लेकर गहरे मतभेद पनप रहे थे।
भूपति और उसके साथियों पर सड़क निर्माण में लगे वाहनों और मशीनों को जलाने, पुलिस दल पर हमला करने और बारूदी सुरंग विस्फोट करने सहित कई जघन्य अपराधों में शामिल होने का आरोप है। इससे पहले, मात्र 20 दिन पूर्व दंतेवाड़ा जिले में ‘लोन वर्राटू’ अभियान से प्रभावित होकर 71 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया था। इनमें 21 महिलाएं और 50 पुरुष माओवादी शामिल थे। इनमें से 30 माओवादियों पर कुल 64 लाख रुपये का इनाम था। सरेंडर करने वालों में डिवीजन कमेटी मेंबर और एरिया कमेटी मेंबर स्तर के माओवादी भी शामिल हैं। इनमें कई ऐसे हैं जो अतीत में कई बड़ी मुठभेड़ों में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं।
इस बड़े आत्मसमर्पण को लेकर अधिकारियों का कहना है कि यह केंद्र और राज्य सरकारों की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीतियों की सफलता को दर्शाता है। यह कदम अन्य भटक चुके माओवादियों को भी मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित कर सकता है। आत्मसमर्पण करने वाले सभी माओवादियों को राज्य सरकार की पुनर्वास नीति का लाभ मिलेगा, जिसके तहत वित्तीय सहायता और समाज में सम्मानजनक जीवन जीने के अवसर प्रदान किए जाते हैं।
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वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि यह समर्पण माओवाद के खिलाफ चल रहे व्यापक अभियानों में एक मील का पत्थर है। पिछले कुछ महीनों में, सैकड़ों माओवादियों ने समर्पण किया है, जिनमें से अधिकांश छत्तीसगढ़ और अन्य माओवाद प्रभावित राज्यों से जुड़े हैं। भूपति जैसे शीर्ष नेतृत्व का आत्मसमर्पण यह स्पष्ट करता है कि सुरक्षा बलों के निरंतर दबाव और स्थानीय जनता के समर्थन खोने के कारण माओवादी संगठनों की नींव कमजोर हो रही है। इस घटना से माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में शांति और विकास की उम्मीदें और मजबूत हुई हैं।