नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर: प्रदेश में हुए 3,200 करोड़ के शराब घोटाले में ईओडब्ल्यू ने मंगलवार को कोर्ट में पूरक चालान पेश किया। इस चालान में विस्तृत समरी दी गई है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह से आबकारी विभाग और शराब माफियाओं की मिलीभगत से संगठित सिंडिकेट ने 2019 से 2023 तक राज्य में समानांतर शराब कारोबार खड़ा कर शासन को भारी नुकसान पहुंचाया।
ईओडब्ल्यू की जांच में सामने आया है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी भिलाई के कारोबारी विजय भाटिया और सीए संजय मिश्रा ने कमीशन वसूलने के लिए अपने रिश्तेदारों और करीबियों के नाम पर डमी डायरेक्टर और कर्मचारी बनाए।
जांच रिपोर्ट के अनुसार, भाटिया ने ओम सांई कंपनी के जरिए करीब 14.21 करोड़ रुपये का कमीशन लिया। इसमें अपने करीबी टी. भुनेश्वर राव, रवि कौरा और सागर अरोरा को कंपनी का डायरेक्टर दिखाया। तीन साल में कंपनी को लगभग 27 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ, जिसमें से आधी रकम भाटिया ने अपने पास रखी।
यह रकम सीधे खाते में न जाकर महक लेखवानी, मयंक गोदवानी, श्रवण लेखवानी, भजनलाल लेखवानी, सागर अरोरा, प्रवीण गोदवानी, कविता अडानी, सरला केशवानी, सुशील कुकरेजा और जुगल अडानी जैसे परिचितों के खातों में पहुंचाई गई। बाद में इन पैसों को पत्नी मोनिका, बेटे विशाल और रिश्तेदारों अमित सेठ, कपिल, शौर्य गुलाटी व शिल्पा गुलाटी के नाम से निवेश किया गया।
सीए संजय मिश्रा ने अपने भाई मनीष मिश्रा और अभिषेक सिंह के नाम पर नेक्सजेन पावर इंजिटेक कंपनी बनाई। इसमें पत्नी वंदना मिश्रा, पिता सुभाष चंद्र, भाई आशीष और अभिषेक की पत्नी प्रियंका सिंह समेत कई को कर्मचारी दिखाकर भुगतान कराया। मनीष को 1.08 करोड़, वंदना को 43.76 लाख, सुभाष चंद्र को 25 लाख, आशीष को 1.01 करोड़, अभिषेक को 56.48 लाख और प्रियंका को 47.42 लाख मिले। तीन साल में इस कंपनी को 27.08 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ।
चालान के अनुसार, तत्कालीन आबकारी आयुक्त अरुणपति त्रिपाठी किसी भी नई शराब नीति का मसौदा पहले वाट्सएप के जरिए अनवर ढेबर को भेजते थे। कारोबारी अनवर ढेबर की सहमति के बाद ही उस नियम को लागू किया जाता था। सिंडिकेट में विभागीय अफसर भी शामिल थे।
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घोटाले को मजबूत करने के लिए एफएल-10ए और 10-बी लाइसेंस प्रथा लागू कराई गई। इसके चलते शराब आपूर्ति करने वाली कंपनियों की संख्या और ब्रांड्स में कमी आई। वर्ष 2019-20 में जहां 60 कंपनियां 266 ब्रांड सप्लाई करती थीं, वहीं 2022-23 तक यह घटकर 39 कंपनियां और 216 ब्रांड रह गईं। आपूर्तिकर्ताओं से मोटा कमीशन वसूला जाता था।