
नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। रायपुर में पुलिस ने अपराधियों की धरपकड़ के लिए देश के सबसे आधुनिक तकनीकी सिस्टम का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। अब पुलिस के पास 3,000 से ज्यादा अपराधियों की हाईटेक ’क्राइम कुंडली’ तैयार है, जिसमें उनके नाम, फोटो, आपराधिक इतिहास के साथ फिंगर प्रिंट (अंगुलियों के निशान) तक दर्ज हैं।
यानी किसी भी वारदात के बाद घटनास्थल पर मिले फिंगर प्रिंट को जैसे ही इस सिस्टम में अपलोड किया जाता है, कंप्यूटर तुरंत उस बदमाश की पहचान कर लेता है। इस डिजिटल डाटाबेस से पुलिस ने अब तक नागपुर, छिंदवाड़ा और गोवा से कई चोरों को गिरफ्तार किया है। यह पूरा सिस्टम नेशनल आटोमेटिक फिंगर आइडेंटिटी सिस्टम (नेफिस) से जुड़ा हुआ है, जिसमें देश के 18 राज्यों के अपराधियों का रिकार्ड एक ही नेटवर्क पर अपलोड है।
केस-1: बालोद में ज्वेलर्स की दुकान से 85 लाख रुपये के गहनों की चोरी ने पुलिस को सिरदर्द में डाल दिया था। मौके से 14 लोगों के फिंगर प्रिंट लिए गए। जब इन्हें नेफिस सिस्टम में अपलोड किया गया, तो दो निशानों का मिलान छिंदवाड़ा के चरन सिंह और संघर्ष सिंह से हुआ। दोनों को पुलिस ने वहां से गिरफ्तार किया।
केस-2: दुर्ग पद्मनाभपुर सराफा दुकान से 40 लाख की चोरी:
इस मामले में भी घटनास्थल पर 14 लोगों के फिंगर प्रिंट जुटाए गए। जांच में एक निशान नागपुर निवासी दिलीप बेसारे का मिला, जो पहले से एक दर्जन मामलों में वांछित था। फिंगर प्रिंट मैच होते ही पुलिस टीम नागपुर पहुंची और आरोपित को गिरफ्तार किया गया।
केस-3: रायपुर में एक साल पहले हुई चोरी
- घटना के छह महीने बाद फिंगर प्रिंट जांच के आधार पर आरोपित को गोवा से गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने घटनास्थल पर मिले निशान सॉफ्टवेयर में अपलोड किए तो कंप्यूटर स्क्रीन पर पूरा अपराध रिकॉर्ड सामने आ गया। रायपुर पुलिस की टीम ने गोवा जाकर आरोपी को दबोच लिया।
रायपुर क्राइम ब्रांच ने 2015 से अपराधियों की फाइलें तैयार करना शुरू किया था, लेकिन तब केवल फोटो और नाम-पता ही दर्ज किए जाते थे। 2022 में नेफिस सिस्टम के आने के बाद हर अपराधी का फिंगर प्रिंट डिजिटल रूप में दर्ज किया जाने लगा।
- नेफिस सिस्टम (एनएएफआइएस) जनवरी 2022 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 18 राज्यों में शुरू किया गया था, जिसमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है। यह सिस्टम पुलिस के राष्ट्रीय डेटाबेस से जुड़ा हुआ है।
किसी भी राज्य में जब अपराध होता है, तो वहां के फिंगर प्रिंट इस नेटवर्क पर अपलोड किए जाते हैं। अगर आरोपित का रिकार्ड किसी दूसरे राज्य में मौजूद है, तो तुरंत मैच हो जाता है।
पुलिस अब इसे और हाइटेक बनाने की तैयारी में है। आने वाले समय में अपराधियों के पैरों के तलवों की छाप (फुटप्रिंट), आंखों की रेटिना और आइरिस स्कैन को भी रिकार्ड में शामिल किया जाएगा। इससे पहचान और भी सटीक और त्वरित हो जाएगी।
- रायपुर में सक्रिय अमन गैंग के सदस्यों की पहचान भी इसी डिजिटल ’क्राइम कुंडली’ से हुई थी। करीब एक साल पहले भाठागांव के एक होटल में पकड़े गए गैंग के सदस्य पुलिस को गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन जैसे ही उनके फिंगर प्रिंट सिस्टम में डाले गए, उनकी पूरी आपराधिक हिस्ट्री स्क्रीन पर सामने आ गई।
अब अपराधी चाहे जहां छिप जाए, उसका फिंगर प्रिंट बोल पड़ेगा। आने वाले दिनों में फुटप्रिंट और आइरिस डाटा से भी अपराधियों की पहचान होगी। यह सिस्टम न केवल पुलिस जांच को आसान बना रहा है, बल्कि कोर्ट में सजा दिलाने में भी निर्णायक साबित हो रहा है।
- डॉ. लाल उम्मेद सिंह, एसएसपी, रायपुर