
नईदुनिया प्रतिनिधि, जगदलपुरः छत्तीसगढ़ में नए विधानसभा भवन के लोकार्पण अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बस्तर की वर्षों पुरानी मुरिया दरबार परंपरा का जिक्र किया। आजादी के पहले रियासतकाल में राजा और जनता के बीच प्रत्यक्ष संवाद और रियासत के विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति, सुख-दुख, मांगों और समस्याओं पर चर्चा दरबार में होती थी। आजादी के बाद दरबार में शासन-प्रशासन के प्रतिनिधि शामिल होते हैं और जनता की बातें सुनते हैं। राजा को बस्तर माटी पुजारी का दर्जा प्राप्त है और दशहरा उत्सव के आयोजन, रस्मों और पूजा विधान में उनकी प्रत्यक्ष और मुख्य सहभागिता होती है और वह भी दरबार में शामिल होते हैं।
बता दें कि पिछली बार चार अक्टूबर को आयोजित मुरिया दरबार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हुए थे।बस्तर दशहरा किताब के लेखक और बस्तर की संस्कृति के जानकार रूद्रनारायण पाणिग्राही ने मुरिया दरबार की विस्तार से चर्चा की है। मुरिया दरवार का सूत्रपात आठ मार्च 1876 को पहली बार हुआ था।
इस मुरिया दरबार में सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेकजार्ज ने राजा और उनके अधिकारियों को संबोधित किया था। वर्ष में एक बार यह दरबार लगता था बाद में इसे दशहरा उत्सव में शामिल कर दिया गया।
बता दें कि दशहरा उत्सव में मांझी, चालकी, मॅवर-मॅबरिन आदि शामिल होते हैं और आयोजन में इनकी प्रभावी भूमिका होती हैं। रियासतकाल में विभिन्न परगनों में प्रशासनिक व्यवस्था विकेंद्रित थी।
दशहरा उत्सव में आज भी परगनों की जिम्मेदारी कायम है। रूद्रनारायण पाणिग्राही के अनुसार मुरिया दरबार में रियासतकाल में राजा जनता की समस्याओं और मांगों का निराकरण करते थे। आज शासन-प्रशासन के प्रतिनिधि इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं।