रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। होलिका दहन से 40 दिन पहले बसंत पंचमी के मौके पर छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में अरंड पेड़ गाड़ने की परंपरा निभाई गई। जिस जगह पर अरंड पेड़ गाड़ा गया है, अब वहां पर लोगबाग अपने घर में रखी अनुपयोगी लकड़ियों को लाकर रखेंगे। होली के एक दिन पहले होलिका दहन पर इन लकड़ियों का दहन किया जाएगा। राजधानी के अनेक इलाकों समेत पुरानी बस्ती के महामाया मंदिर में भी विधिवत पूजा-अर्चना कर अरंड पेड़ गाड़ा गया।
डाड़ गाड़ने की रस्म
मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला ने बताया कि अंडा पेड़ गाड़ने की रस्म को डाड़ गाड़ना कहते हैं। बसंतपंचमी से होली पर्व की शुरुआत हो जाती है। अब होलिका दहन के लिए इसी स्थान पर लकड़ियां एकत्रित की जाएगी। मंदिर के प्रधान पुजारी पं.बंशीलाल शर्मा के सान्निध्य में पूजा की गई।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति के जानकार साहित्यकार डा.पीसी लाल यादव ने बताया कि छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में सदियों से होलिका दहन वाले स्थल पर अरंड पेड़ गाड़ने की परंपरा निभाई जा रही है। जिस जगह पर यह पेड़ गाड़ा जाता है, उसी जगह पर ही होलिका दहन की रस्म निभाई जाती है। इसका उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा करना रहा है। हमारे पूर्वज प्रकृति की रक्षा करने के प्रति जागरूक रहते थे। होलिका दहन पर हरे-भरे पेड़ों को न काटा जाए, इसलिए अरंड पेड़ गाड़कर वहां घर-घर में रखे गए कबाड़ को लाकर रखते थे। जंगल में पेड़ों से गिरी सूखी टहनियों को ही जलाया जाता था। बाद में यह परंपरा बन गई।
कीटाणुनाशक है अरंड पेड़
तालाब के किनारे जंगल झाड़ी में अरंडी पेड़ अपने आप उगता है, इसे खरपतवार की श्रेणी का पेड़ माना जाता है। इसे ग्रामीण इलाकाें में अंडा पेड़ कहा जाता है। इसे जलाने से जो धुआं निकलता है, उससे कीटाणुओं का खात्मा होता है। गांवों में जब मच्छरों का प्रकाेप फैलता है, तब मच्छरों का खात्मा करने के लिए अंडा पेड़ जलाया जाता है। मच्छर, कीड़े-मकौड़े खत्म होने से बीमारियों पर नियंत्रण रहता है।