राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत जनरेशन कंपनी द्वारा कोयला ट्रांसपोर्टिंग के लिए निकाले गए टेंडर को दो महीने बीतने के बाद भी नहीं खोला गया है। इससे ट्रांसपोर्टर जहां असमंजस में हैं, वहीं कंपनी की पारदर्शिता और मंशा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक बिजली कंपनी एक बड़ी समूह की खदानों से अपने कोल प्लांटों तक कोयला पहुंचाने के लिए हर वर्ष 500-700 करोड़ रुपये खर्च करता है। पूर्व में अधिक दरों पर टेंडर दिए जाने से 100-150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ा था। जब अध्ययन कर यह बताया गया कि कम दरों पर यह कार्य संभव है, तब नया टेंडर निकाला गया, लेकिन प्रक्रिया को बीच में ही रोक दिया गया।
सूत्रों का कहना है कि यदि यह टेंडर पारदर्शिता से खोला जाता, तो ट्रांसपोर्टिंग लागत में भारी बचत होती और बिजली दरों में वृद्धि से बचा जा सकता था,लेकिन कंपनी अपने पैसे बचाने में रुचि नहीं दिखा रही है। विवाद इस बात को लेकर भी है कि टेंडर पास करने वाली समिति में निजी खनन कंपनी के दो सदस्य शामिल हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। पिछली बार भी इसी तरह गुजरात की एक कंपनी को टेंडर दे दिया गया था।
गौरतलब है कि खदानों से कोयला निकालकर उस कोयले को बिजली प्लांट तक रेलवे वैगन, ट्रक आदि से पहुंचाया जाता है। खदान से प्लांट तक कोयला पहुंचाने का खर्च बिजली कंपनी ही उठाती है। इसके लिए ट्रांसपोर्टिंग कंपनी को ठेका दिया जाता है। हालांकि, इसका भार बिजली उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है। क्योंकि, ट्रांसपोर्टिंग का खर्च उपभोक्ताओं की बिजली लागत में शामिल होता है। उसे बिजली बिल के साथ वसूल किया जाता है।
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कोयला ट्रांसपोर्टिंग के लिए टेंडर आमंत्रित किया गया था। कुछ दिक्कतों के कारण यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई थी। अब पूरी हो चुकी है और जल्द ही टेंडर खोला जाएगा। गुणवत्ता सुनिश्चित करने और कोयला आपूर्ति में किसी तरह की शिकायत सामने न आए,इसे रोकने के लिए खनन कंपनी के प्रतिनिधियों को टेंडर प्रक्रिया में शामिल किया जाता है।
-संजीव कुमार कटियार, एमडी, राज्य बिजली जनरेशन कंपनी