Navratri 2021: आठवीं-नौवीं के शताब्दी के पूर्व के है महामाया मंदिर का स्तंभ, पढ़ें स्पेशल स्टोरी
महामाया की प्रतिमा पर सूर्य अस्त होने के समय सूर्य की किरणें माता के चरणों का स्पर्श करती हैं।
By Shashank.bajpai
Edited By: Shashank.bajpai
Publish Date: Thu, 07 Oct 2021 10:58:30 AM (IST)
Updated Date: Thu, 07 Oct 2021 10:58:30 AM (IST)

रायपुर, (नईदुनिया प्रतिनिधि)। पुरानी बस्ती, महामाया पारा स्थित मां महामाया देवी मंदिर पूरे छत्तीसगढ़ समेत देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। वहीं, मंदिर का इतिहास भी पुराना है। पुरातत्व विभाग के अनुसार मंदिर के स्तंभ आठवीं-नौवीं शताब्दी पूर्व के है। आज मंदिर में जोत प्रज्जवलित किए जाएंगे। यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है। नवरात्र में भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है।
मंदिर का इतिहास
मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला के अनुसार, राजा मोरध्वज द्वारा प्रतिस्थापित मंदिर का जीर्णोद्धार कालांतर में 17वीं-18वीं शताब्दी में नागपुर के मराठा शासकों ने करवाया। मंदिर का गर्भगृह, द्वार, तोरण, मंडल के मध्य के छह स्तंभ एक सीध में हैं। दीवारों पर नागगृह चित्रित है। बताया जाता है कि कल्चुरी वंश के राजा मोरध्वज ने मां के स्वप्न में दिए आदेश पर खारुन नदी से प्रतिमा को सिर पर उठाकर पुरानी बस्ती के जंगल तक पांच किलोमीटर पैदल चले।
![naidunia_image]()
राजा जब थक गए तो प्रतिमा को एक शिला पर रख दिया। इसके बाद प्रतिमा अपनी जगह से हिली नहीं। मजबूर होकर उसी अवस्था में मंदिर का निर्माण किया गया। खास बात यह है कि मां महामाया देवी मंदिर में विराजी मां की मूर्ति थोड़ी-सी तिरछी दिखती है। इसका कारण है कि रखते समय प्रतिमा थोड़ी तिरछी हो गई।
![naidunia_image]()
सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें माता के चरणों को करती हैं स्पर्श
पुजारी मनोज शुक्ला ने बताया कि मां महामाया की प्रतिमा पर सूर्य अस्त होने के समय सूर्य की किरणें माता के चरणों का स्पर्श करती हैं। तीनों रूप में विराजी मां महामाया देवी, मां महाकाली के स्वरूप में यहां विराजमान हैं। वहीं, मंदिर के ठीक सामने परिसर में ही मां समलेश्वरी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है।