
नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। साल 2025 भारतीय सुरक्षा इतिहास में माओवाद के विरुद्ध 'निर्णायक युद्ध' के वर्ष के रूप में दर्ज हो गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर से लेकर अबूझमाड़ के घने जंगलों तक, सुरक्षाबलों ने इस साल वह कर दिखाया जो पिछले तीन दशकों में नहीं हुआ था। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा निर्धारित 31 मार्च 2026 की डेडलाइन से पहले ही माओवादियों का किला ढहता नजर आ रहा है।
इस साल सुरक्षाबलों ने न केवल माओवादियों की संख्या कम की, बल्कि उनके 'ब्रेन ट्रस्ट' और टॉप कमांडरों का सफाया कर संगठन की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है। आइए जानते हैं साल 2025 की उन 10 बड़ी मुठभेड़ों के बारे में, जिन्होंने लाल आतंक के अंत की पटकथा लिख दी:

18 नवंबर 2025 को सुरक्षाबलों ने सबसे बड़ी सफलता तब हासिल की, जब खूंखार कमांडर माड़वी हिड़मा को एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया। सुकमा के पूवर्ती गांव का रहने वाला हिड़मा पिछले दो दशकों से सुरक्षाबलों पर हुए हर बड़े हमले का मास्टरमाइंड था। वह कोर कमेटी का सदस्य और गुरिल्ला वारफेयर का उस्ताद माना जाता था।

अबूझमाड़ के जंगलों में 21 मई 2025 को बसवा राजू मारा गया। बीटेक इंजीनियर रहा बसवा राजू माओवाद संगठन में 'पोलित ब्यूरो' का महासचिव था। वह न केवल हथियारों का विशेषज्ञ था, बल्कि माओवादी रणनीति बनाने में सबसे ऊपर था।

क्रिसमस के दिन यानी 25 दिसंबर को ओडिशा के कंधमाल में सुरक्षाबलों ने गणेश उईके को मार गिराया। तेलंगाना का रहने वाला उईके सेंट्रल कमेटी का सदस्य और ओडिशा स्टेट कमेटी का सचिव था। इसकी मौत ने ओडिशा-छत्तीसगढ़ सीमा पर माओवादियों के नेटवर्क को तबाह कर दिया है।

21 जनवरी को गरियाबंद में हुई मुठभेड़ में कोर कमेटी सदस्य चलपति को मार गिराया गया। आंध्र प्रदेश का रहने वाला यह माओवादी कई उपनामों से सक्रिय था और संगठन के रणनीतिक निर्णयों में अहम भूमिका निभाता था।

7 जून को बीजापुर के नेशनल पार्क एरिया में सुधाकर का एनकाउंटर हुआ। सुधाकर 17 सालों से अबूझमाड़ में सक्रिय था और तेलंगाना, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था।
इन एनकाउंटर्स के बाद माओवादी संगठन में नेतृत्व का संकट पैदा हो गया है। बस्तर के वे इलाके जो कभी 'नो-गो ज़ोन' कहलाते थे, वहां अब सुरक्षाबलों के कैंप स्थापित हो चुके हैं। 2025 की ये सफलताएं इस बात का प्रमाण हैं कि भारत अब नक्सलवाद के पूर्ण खात्मे की दहलीज पर खड़ा है।