संपादकीय : हाथरस कांड की जांच
यूपी सरकार हाथरस की सीबीआइ जांच की घोषणा कर चुकी है, ऐसे में एक बार फिर मांग करने का कोई मतलब नहीं।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Fri, 09 Oct 2020 01:28:28 AM (IST)
Updated Date: Fri, 09 Oct 2020 04:00:00 AM (IST)

हाथरस कांड की जांच सीबीआइ से कराने की मांग को लेकर एक गैर सरकारी संगठन की ओर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का कोई मतलब नहीं है। यह केवल सुप्रीम कोर्ट का समय बर्बाद करने वाली कवायद ही नहीं, बल्कि श्रेय लूटने की कोशिश भी है। आखिर जब खुद उत्तर प्रदेश सरकार इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने की घोषणा कर चुकी है, तब फिर किसी अन्य की ओर से ऐसी ही मांग करने का मकसद प्रचार पाने अथवा अन्य किसी संकीर्ण स्वार्थ का संधान करने के अलावा और क्या हो सकता है? उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष केवल यही नहीं कहा कि इस मामले की जांच सीबीआइ से कराई जाए, बल्कि यह भी प्रस्ताव दिया कि इस जांच की निगरानी श्ाीर्ष अदालत खुद करे। समझना कठिन है कि इस स्पष्ट प्रस्ताव के बाद भी किसी को यह क्यों लग रहा है कि उसे यह मांग करने की जरूरत है कि मामले की जांच सीबीआइ करे? क्या इसलिए कि खुद को पीड़ित पक्ष का ज्यादा बड़ा हितैषी साबित किया जा सके?
यह देखना दयनीय है कि गैर राजनीतिक संगठनों की ओर से भी राजनीतिक दलों सरीखे तौर-तरीके अपनाए जा रहे हैं। हाथरस कांड को लेकर राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठन भले ही दलित हितैषी साबित करने की होड़ करते दिखाई दें, लेकिन उनका मकसद अपनी राजनीति चमकाना ही है। यही कारण्ा है कि वे हाथरस तो दौड़े चले जा रहे हैं, लेकिन अन्य स्थानों पर घटी ऐसी ही घटनाओं का संज्ञान लेने से बच रहे हैं। इससे खराब बात और कोई नहीं कि किसी गंभीर घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने अथवा संवेदना जताने का काम यह देखकर किया जाए कि घटना कहां, किसके साथ और किस दल के शासन वाले राज्य में हुई है? चूंकि हाथरस सरीखी घटनाओं को राजनीतिक चश्मे से देखा जाने लगा है, इसलिए संवेदना प्रकट करने के बहाने राजनीतिक हित साधने की ही कोशिश अधिक की जाती है। इससे खराब बात और कोई नहीं कि सुप्रीम कोर्ट को संकीर्ण स्वार्थों को सिद्ध करने का जरिया बनाया जाने लगे, लेकिन दुर्भाग्य से बीते कुछ समय से ऐसा ही हो रहा है। यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि सुप्रीम कोर्ट उन तत्वों को हतोत्साहित करे, जिन्होंने अपनी राजनीतिक लड़ाई उसके जरिये लड़ना अपनी रणनीति बना ली है। यदि ऐसे तत्वों को हतोत्साहित नहीं किया गया तो ये देश के प्रत्येक छोटे-बड़े मामले में अपने लिए प्रचार खोजने लगेंगे या उन्हें अपना स्वार्थ सिद्ध करने का जरिया बनाने लगेंगे। हाथरस कांड में जिस तरह परस्पर विरोधी दावे किए जा रहे हैं और नित-नई बातें सामने आ रही हैं, उन्हेंं देखते हुए यही उचित है कि मामले की इस तरह गहन जांच हो कि कहीं कोई संदेह न रह जाए। इसमें जितनी देर होगी, सस्ती राजनीति करने वालों को उतनी ही सुविधा मिलेगी।