नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौरः कभी शब्दों से, कभी इशारों से, तो कभी विज्ञान की प्रयोगशाला से। इन शिक्षकों ने दिखाया है कि शिक्षा केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाली शक्ति है। विश्व शिक्षक दिवस के अवसर पर शहर के शिक्षकों की कहानियां इस सच्चाई को जीवंत करती हैं कि जब शिक्षण सेवा बन जाए, तो समाज खुद ज्ञान का विद्यालय बन उठता है।
भारत में बेशक शिक्षक दिवस पांच सितंबर को मनाया जाता है, लेकिन विश्व शिक्षक दिवस पांच अक्टूबर को मनाया जाता है। इसे 1994 में यूनेस्को ने घोषित किया था, ताकि समाज और शिक्षा के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिल सके। वर्तमान में शहर में ऐसे कई शिक्षक हैं जिन्होंने अपनी पहचान अलग स्तर पर बनाई है।
माता जीजाबाई शासकीय महाविद्यालय की प्रोफेसर बेला सचदेवा पिछले 30 वर्षों से नेत्रहीन छात्राओं के जीवन में शिक्षा का उजाला फैला रही हैं। उनकी यात्रा 1996 में एक आकस्मिक मुलाकात से शुरू हुई जब उन्होंने देखा कि दृष्टिबाधित छात्राओं के पास अध्ययन सामग्री नहीं थी। उन्होंने खुद की आवाज़ में पाठ रिकार्ड कर उन्हें सुनने के लिए कैसेट उपलब्ध कराए। यही शुरुआत आगे चलकर एक सामाजिक आंदोलन बन गई।
उन्होंने कालेज में ‘ब्लाइंड हेल्पलाइन सेल’ की स्थापना की, जो नेत्रहीन छात्राओं को परीक्षा के लिए ‘राइटर’ उपलब्ध कराता है। बाद में उन्होंने डिजिटल तकनीक को अपनाया और चेन्नई स्थित एक एनजीओ संस्था के साथ मिलकर हर छात्रा को एनवीडीए टाकिंग साफ्टवेयर लैपटाप दिलवाया। उनकी छात्राएं अब बैंकिंग, शिक्षण और अन्य पेशों में सफल हैं। बेला को हाल ही में मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार और इंदौर कलेक्टर सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। उनका कहना है, “शिक्षा केवल किताबों का ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की कुंजी है।”
इंदौर मूक-बधिर संगठन में कार्यरत स्पेशल एजुकेटर वीणा लालगे उन शिक्षिकाओं में हैं जो खामोशी को संवाद में बदलना जानती हैं। उन्होंने मूक-बधिर छात्रों को इस तरह सशक्त किया है कि वे खुद शिक्षक बनकर दूसरों को मार्गदर्शन दे सकें।
उनकी पहल से यह संस्थान केवल स्कूल नहीं, बल्कि एक सशक्तीकरण केंद्र बन गया है जहां 12वीं के बाद छात्र बीए, बीकाम और स्पेशल बीएड कोर्स कर अपने पैरों पर खड़े होते हैं। आज लगभग 300 से अधिक छात्र उनके मार्गदर्शन में पढ़-लिखकर सरकारी नौकरियों में कार्यरत हैं। वीणा का कहना है कि जब कोई बच्चा वीडियो काल पर बताता है कि अब वह शिक्षक बन गया है, तो वह पल मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा पुरस्कार होता है। उनकी शिक्षा पद्धति में सहानुभूति, धैर्य और निरंतर अनुकूलन ही सफलता के स्तंभ हैं। दिल्ली के आईएसएलआरटीसी में साइन लैंग्वेज पाठ्यक्रम डिजाइन में उनका योगदान भी रहा है।
विश्व शिक्षक दिवस हर साल 5 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1994 में यूनेस्को द्वारा की गई थी। इस दिन को मनाने का उद्देश्य शिक्षकों की सामाजिक भूमिका, उनके योगदान और शिक्षा प्रणाली के विकास में उनके महत्व को वैश्विक स्तर पर मान्यता देना है।
1966 में यूनेस्को और आईएलओ द्वारा अपनाई गई टीचर्स स्टेटस रिकमेन्डेशन से प्रेरित होकर यह दिवस शिक्षकों के अधिकारों और सम्मान के प्रतीक के रूप में स्थापित हुआ। आज यह दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि चिंतन का भी अवसर है। कैसे शिक्षकों को बेहतर संसाधन, सम्मान और प्रशिक्षण मिल सके ताकि वे अगली पीढ़ी को ज्ञान और मूल्यों से समृद्ध बना सकें।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) इंदौर के रसायन विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देबयान सरकार को मूल विज्ञान (प्योर साइंस) श्रेणी में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 के लिए चुना गया है। उन्होंने अब तक दस से अधिक शोध प्रोजेक्ट पूरे किए हैं और ग्यारह प्रोजेक्ट पर कार्य जारी है। उनके नाम तीन पेटेंट भी दर्ज हैं।
डॉ. सरकार वर्तमान में विजिबल लाइट (सौर ऊर्जा) के उपयोग से प्लास्टिक को उपयोगी फाइन केमिकल्स में बदलने पर शोध कर रहे हैं, जिसे रसायन शास्त्र में एटम इकोनामिक सिंथेसिस कहा जाता है। उनका मानना है कि विज्ञान का असली उद्देश्य तभी पूरा होता है जब उसका लाभ समाज तक पहुंचे। विश्व शिक्षक दिवस पर उनका यह अभिनव कार्य न केवल वैज्ञानिक सोच का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि एक शिक्षक प्रयोगशाला की दीवारों से आगे बढ़कर भी समाज के लिए नई दिशा बना सकता है।
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प्राचार्य डॉ. रीना पाटिल को इस वर्ष दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय शिक्षा नेतृत्व सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है। पिछले 20 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय डा. पाटिल ने न केवल अध्यापन को नया आयाम दिया है, बल्कि शिक्षा में शोध और नवाचार की मिसाल भी पेश की है। आइआइटी मुंबई से ग्रीन थिंकर एजुकेटर अवार्ड, दुबई व सिंगापुर में अंतरराष्ट्रीय सम्मान और कई रिसर्च पेपरों के साथ वे शिक्षा जगत में अग्रणी हैं।
उनका शोध सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE) प्रणाली पर आधारित है, जिसने बीएड कोर्स के सेमेस्टर सिस्टम में महत्वपूर्ण सुधार दिखाया। स्लम क्षेत्रों में जाकर बच्चों को शिक्षित करने से लेकर पीएचडी विद्यार्थियों के मार्गदर्शन तक, डा. रीना पाटिल का प्रयास बताता है कि एक सच्चा शिक्षक वह है जो शिक्षा को केवल विषय नहीं, बल्कि समाज के उत्थान का साधन मानता है।