डिजिटल डेस्क। बिहार में सियासी तापमान चढ़ चुका है। 2025 में हो रहे बिहार विधानसभा चुनाव में पुराने चेहरे, पुराने किस्से और पुरानी परंपराएं फिर लौट आई हैं। बस अंदाज बदल गया है। अब बंदूक थामने वाले खुद तो पीछे हट रहे हैं, मगर राजनीतिक गद्दी अपने परिवार के हवाले कर रहे हैं। जहां पहले बाहुबली खुद मैदान में उतरते थे, अब उनकी विरासत उनके बेटे-बेटियों, पत्नियों या भाइयों के कंधों पर टिकी है। मोकामा से लेकर गोविंदगंज तक बिहार की राजनीति में दबंग परिवारों का दबदबा आज भी बरकरार है।
अपराध, जाति और वर्चस्व की सियासत, अब परिवारों की चौथी पीढ़ी तक
बिहार की राजनीति अपराध, जातीय समीकरणों और क्षेत्रीय वर्चस्व के उस त्रिकोण पर टिकी है, जो अब वंश परंपरा बन चुका है। चुनावी हलफनामों के विश्लेषण पर ADR की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि इस बार के 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 22 से ज्यादा सीटों पर बाहुबली या उनके परिजन मैदान में हैं।
47% उम्मीदवारों पर आपराधिक केस
ADR की रिपोर्ट के मुताबिक, 47% उम्मीदवारों पर आपराधिक केस हैं और इनमें से 27% पर हत्या, रंगदारी या धमकी जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं। सत्ताधारी JDU और विपक्षी RJD दोनों ने ही इन दबंग परिवारों पर भरोसा जताया है। RJD ने 9, JDU ने 7, BJP ने 4 और LJP ने 2 ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है जिनका नाम किसी न किसी ‘बाहुबली’विरासत से जुड़ा है।
मोकामा की सियासी जंग: ‘छोटे सरकार’ बनाम सूरजभान परिवार
मोकामा से JDU उम्मीदवार अनंत सिंह, जिन्हें लोग ‘छोटे सरकार’ कहकर पुकारते हैं, 28 से अधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। UAPA जैसे गंभीर कानूनों के तहत जेल काट चुके अनंत सिंह की संपत्ति 37.88 करोड़ रुपए बताई गई है। उनकी सीधी टक्कर RJD की वीणा देवी से है, जो सूरजभान सिंह की पत्नी हैं। सूरजभान हत्या के मामले में सजा के कारण चुनाव लड़ने से वंचित हैं। मोकामा में यह सिर्फ दो नेताओं की लड़ाई नहीं, बल्कि दो बाहुबलियों का आमना-सामना है।
एकमा में धूमल सिंह की सियासत, दबंग छवि पर अपराध मुक्त
JDU के धूमल सिंह (मनोरंजन सिंह) ने एकमा सीट से ताल ठोकी है। दिलचस्प बात यह है कि उनके खिलाफ कोई केस नहीं पर इलाके में उनकी ‘दबंग छवि’ है। 3.27 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक धूमल, ‘साफ छवि वाले दबंग’ के तौर पर अपनी पहचान बना रहे हैं। उनकी ये छवि JDU के लिए तुरुप का पत्ता मानी जा रही है।
गोविंदगंज से राजू तिवारी
पूर्वी चंपारण के गोविंदगंज से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी ने दोबारा मैदान संभाला है। राजू कहते हैं, चिराग का भरोसा ही मेरी ताकत है। उनकी छवि खुद ‘बाहुबली’ जैसी है, लेकिन वो इसे अब ‘संगठन की ताकत’ में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
रितलाल यादव और पप्पू पांडेय
दानापुर से RJD के रितलाल यादव जेल में रहकर भी चुनाव लड़ रहे हैं। 30 से अधिक गंभीर केस (हत्या, रंगदारी, वसूली) झेल रहे रितलाल का मुकाबला सत्ताधारी ताकतों से सीधा है। वहीं कुचायकोट से JDU के अमरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय 14 केसों के बावजूद चुनावी मैदान में डटे हुए हैं।
मुन्ना शुक्ला परिवार: जेल से चुनावी रणनीति
बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड के भागलपुर जेल में बंद सजायाफ्ता मुन्ना शुक्ला का परिवार लालगंज सीट पर RJD का चेहरा बन चुका है। अब उनकी बेटी शिवानी शुक्ला लालगंज से RJD के टिकट पर मैदान में हैं। भूमिहार वोटबैंक पर पकड़ के चलते RJD ने उन्हें चुना है।
बाहुबली शहाबुद्दीन का बेटा भी चुनावी मैदान में
सिवान के कुख्यात बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन का बेटा ओसामा शहाबुद्दीन भी RJD के टिकट पर रघुनाथपुर (सिवान) से चुनावी मैदान में है। ओसामा के ऊपर 5 आपराधिक केस हैं। सिवान से पटना तक शहाबुद्दीन का प्रभाव था। ऐसे में ओसामा के जरिए RJD मुस्लिम-यादव वोटबैंक को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
रामा सिंह: वैशाली का पुराना दबंग
वैशाली के महनार से पूर्व विधायक रामा किशोर सिंह (रामा सिंह) पर हत्या, अपहरण के दर्जनों केस हैं। 2024 में RJD से इस्तीफा देकर NDA की ओर मुड़े। महनार पर उनका प्रभाव बरकरार है।
जीतने की क्षमता, आपराधिक छवि से ज्यादा मायने रखती है
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में जातीय समीकरण अब भी सबसे बड़ा फैक्टर है। शहाबुद्दीन के बेटे और मुन्ना शुक्ला की बेटी का चुनाव लड़ना बताता है कि सत्ता की विरासत अब खून में बहती है। हर दल के लिए (Winability) यानी जीतने की क्षमता, किसी की आपराधिक छवि से कहीं ज्यादा मायने रखती है। 2025 के इस महासमर में बिहार की जनता के सामने फिर वही पुराना सवाल खड़ा है, क्या इस बार वोट ‘विकास’ को मिलेगा या ‘वर्चस्व’ को? 10 नवंबर को मतगणना के दिन इसका जवाब मिल जाएगा।