डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली: बिहार विधानसभा की राजनीति (Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025 Politics) में कई सीटें अपने विशेष जातीय समीकरणों के लिए जानी जाती हैं, लेकिन अररिया जिले की नरपतगंज विधानसभा सीट एक अनोखा उदाहरण है। यहां 1962 से लेकर अब तक हुए 15 में से 14 चुनावों में यादव समुदाय के प्रत्याशी ही विजेता बने हैं। पार्टी बदलती रही- कांग्रेस, BJP, राजद या जनता दल लेकिन जनता का भरोसा हमेशा यादव उम्मीदवार पर ही रहा है। अब 2025 का चुनाव इस परंपरा को तोड़ेगा या जारी रखेगा, यही देखने लायक होगा।
नरपतगंज विधानसभा सीट सीमांचल क्षेत्र की सबसे चर्चित सीटों में से एक है। राजनीतिक विश्लेषक इसे “बिहार की जातीय राजनीति का आईना” कहते हैं, क्योंकि यहां हर चुनाव जातीय समीकरणों पर ही टिका रहा है। यादव मतदाता लगभग 30 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता करीब 25 प्रतिशत हैं। यही दोनों वर्ग यहां की विजय का गणित तय करते हैं।
नरपतगंज का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां की राजनीति पर यादव समुदाय का लगातार प्रभाव रहा है।
इन आंकड़ों से साफ है कि पार्टी बदली लेकिन जाति नहीं बदली। यादव उम्मीदवारों का वर्चस्व कायम रहा है।
नरपतगंज की सामाजिक बनावट इस चुनावी परंपरा की जड़ है। यादवों की बड़ी संख्या और मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन ने हर बार यादव उम्मीदवार को बढ़त दी। हालांकि अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों की आबादी भी प्रभावी है, पर उनका झुकाव भी अक्सर यादव उम्मीदवार की ओर ही रहा है।
#WATCH | Patna, Bihar: On NDA announcing seat-sharing formula for Bihar assembly elections 2025, Bihar Minister Neeraj Kumar Singh says, "Our alliance has been formed for development...Nitish Kumar is our leader, and if the government is formed again, he will become the Chief… pic.twitter.com/UnekWfipcq
— ANI (@ANI) October 12, 2025
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस सीट पर जातीय पहचान ही मुख्य चुनावी मुद्दा रही है। दल चाहे कांग्रेस हो, भाजपा या राजद, टिकट हमेशा यादव उम्मीदवार को ही मिलता रहा क्योंकि हर पार्टी जानती है कि “वोट यादव का, जीत उसी की।”
हालांकि अब माहौल थोड़ा बदलता दिख रहा है। विकास, रोजगार, सड़क और शिक्षा जैसे मुद्दे तेजी से उभर रहे हैं। क्षेत्र में बार-बार आने वाली बाढ़, खराब सड़कें और युवाओं का पलायन जनता की नाराजगी का कारण बन रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में यह चर्चा है कि “अब जाति नहीं, काम देखने का समय आ गया है।”
जन सुराज के आने से यहां त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बन रही है। राजद का परंपरागत यादव-मुस्लिम समीकरण और भाजपा का संगठनात्मक ढांचा अब नई चुनौती झेल सकते हैं। जन सुराज के कार्यकर्ता लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं और स्थानीय मुद्दों पर जनता से संवाद कर रहे हैं। इससे पुराने जातीय समीकरणों पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 का बिहार चुनाव नरपतगंज की राजनीति का निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। क्या इस बार जनता जातीय परंपरा तोड़कर विकास के आधार पर नेता चुनेगी? या फिर यादव वर्चस्व का सिलसिला एक बार फिर जारी रहेगा? इसका जवाब आने वाला चुनाव ही देगा।