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एजेंसी, लखीसराय। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Election 2025 Phase 1 Voting) में लोकतंत्र का नया अध्याय लिखा जा रहा है। करीब 16 साल बाद लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र के चार नक्सल प्रभावित गांवों के सैकड़ों मतदाता पहली बार अपने ही गांव में वोट डालेंगे। यह बदलाव न केवल प्रशासनिक सफलता का प्रतीक है, बल्कि शांति और लोकतांत्रिक पुनर्जागरण की कहानी भी कहता है।
चानन प्रखंड के कछुआ और बासकुंड जैसे गांव कभी माओवादियों का गढ़ माने जाते थे। इन इलाकों में सुरक्षा की कमी और नक्सली प्रभाव के कारण वर्षों तक मतदान केंद्रों को मैदानी इलाकों में स्थानांतरित किया गया था। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान इन पांच मतदान केंद्रों को जंगल क्षेत्र से हटाकर सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया था, लेकिन अब नक्सल मुक्त माहौल बनने के बाद चुनाव आयोग ने उन्हें उनके मूल गांवों में फिर से बहाल कर दिया है।
इस बार कछुआ गांव के सामुदायिक भवन (मतदान केंद्र संख्या 407) और उत्क्रमित मध्य विद्यालय बासकुंड-कछुआ (मतदान केंद्र संख्या 417) में पहली बार अर्धसैनिक बलों की कड़ी निगरानी में मतदान होगा। कछुआ केंद्र पर 363 मतदाता और बासकुंड-कछुआ केंद्र पर 495 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।
पहले, मतदाताओं को वोट डालने के लिए 6 से 10 किलोमीटर तक जंगल और पहाड़ों से होकर गुजरना पड़ता था। कछुआ निवासी होइल कोड़ा बताते हैं, “पहले डर का माहौल था, अधिकारी भी नहीं आते थे। अब माओवादी चले गए हैं, सरकार ने गांव में बूथ बना दिया है - अब सब वोट डालेंगे।”
यह परिवर्तन प्रशासनिक प्रयासों और सुरक्षाबलों की प्रतिबद्धता का नतीजा है। अब गांवों में विकास की नई उम्मीद और लोकतंत्र में नई आस्था दिखाई दे रही है। लखीसराय जिले के कुल 56 मतदान केंद्र नक्सल प्रभावित माने जाते हैं, जिनमें से कई आज सामान्य माहौल में वापस लौट चुके हैं। यह चुनाव न केवल नेताओं के भाग्य का फैसला करेगा, बल्कि उन गांवों के भविष्य की दिशा भी तय करेगा, जहां अब डर नहीं, बल्कि लोकतंत्र की ‘ईवीएम ध्वनि’ गूंजेगी।