MP Politics News इलेक्शन डेस्क, इंदौर। मध्य प्रदेश की राजनीति से कई किस्से जुड़े हैं। किस्से सरकार गिराने के हैं और किस्से नई सरकार बन जाने के भी। किस्से शपथ ग्रहण के हैं, तो किस्से दल बदल के भी। एक ऐसा ही किस्सा मुख्यमंत्री बनते-बनते रह जाने का भी है, वो भी महज 250 रुपये के चक्कर में।
आज की राजनीति में सत्ता के लिए करोड़ों अरबों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं, साम दाम दंड भेद जैसे हथकंडे तक अपनाए जाते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश का एक किस्सा ऐसा भी है जहां सिर्फ 250 के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी। यह किस्सा है, मध्य प्रदेश के राजनीति के चाणक्य रहे द्वारका प्रसाद मिश्रा का, जो कि दो बार मुख्यमंत्री रहे थे, लेकिन तक तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो 250 रुपये उनकी राह में रोड़ा बन गए और वे सीएम की कुर्सी से दूर हो गए।
दरअसल, 60 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र और राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बीच राजनीतिक खींची हुई थी, जब राजमाता ने 36 विधायक तोड़कर मिश्र की सरकार गिरा दी थी, उसके बाद गठबंधन सरकार बनी और गोविंद नारायण सिंह मुख्यमंत्री बनाए गए, लेकिन यह सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चल सकी और 19 माह में गिर गई। बाद में अप्रैल 1969 में राजा नरेशचंद्र ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन 13 दिन में ही इस्तीफा दे दिया।
इस सियासी घटनाक्रम के बाद द्वारका प्रसाद मिश्र ने फिर सियासी मैदान पकड़ लिया और मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार भी बन गए, लेकिन इस बीच उनके विरोधी भी सक्रिय हो गए।
1963 में कसडोल में उपचुनाव हुए थे, जिसमें द्वारका प्रसाद मिश्र विजयी हुए। इस चुनाव में उन पर आर्थिक अनियमितता का आरोप लगा था और इसको लेकर कोर्ट में याचिका भी दायर की थी। मिश्र तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने ही वाले थे कि इस याचिका पर कोर्ट का फैसला आ गया। जिसमें कोर्ट ने यह माना कि मिश्र ने चुनाव में तय सीमा से अधिक खर्च किए हैं।
दरअसल, उस चुनाव में निर्वाचन आयोग ने खर्च की सीमा 249 रुपए 72 पैसे (करीब 250 रुपए) तय की थी, लेकिन जबलपुर हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मिश्र ने तय सीमा से अधिक खर्च किया है, ऐसे में कोर्ट ने उनका चुनाव चुनाव रद्द कर दिया और उन्हें छह वर्ष के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दे दिया।
कोर्ट के इस फैसले के चलते मिश्र मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर हो गए और श्यामाचरण शुक्ल को मुख्यमंत्री बनाया गया।