इलेक्शन डेस्क, इंदौर। मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंधिया राजघराना शुरू से ही किंगमेकर की भूमिका में रहा, लेकिन ग्वालियर रियासत में राज करने वाले सिंधिया घराने से कोई मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बन सका। जीवाजी राव और राजमाता विजयाराजे सिंधिया से शुरू हुआ सफर माधव राव होते हुए आज उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया तक आ पहुंचा है। ऐसे कई मौके आए जब मध्यप्रदेश की कुर्सी सिंधिया घराने को मिलते-मिलते रह गई। आज हम बात करेंगे कांग्रेस की राजनीति करने वाले स्व. माधवराव सिंधिया की, जब वे सीएम बनते-बनते रह गए।
अपनी मां व राजमाता विजयाराजे सिंधिया की राह में जनसंघ से राजनीति की शुरुआत करने वाले माधवराव सिंधिया के राजनैतिक सफर में दो ऐसे मौके आए जब वो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए। 1971 में छब्बीस वर्ष की उम्र में जनसंघ से पहला चुनाव लड़ने वाले माधवराव राजमाता से अनबन के बाद दोबारा निर्दलीय चुनाव लड़े और तीसरी बार 1979 कांग्रेस में आए तो फिर उन्होंने कांग्रेस कभी नहीं छोड़ी सिवाय बीच के दो वर्षों के जब हवाला काण्ड के कारण प्रधानमंत्री पी. व्ही. नरसिंहराव ने टिकिट नहीं दिया।
बात 1989 की है मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे। चुरहट काण्ड के चलते अर्जुन सिंह पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का दबाव बढ़ा तो राजीव गांधी तत्कालीन रेलमंत्री माधवराव सिंधिया को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बना कर भोपाल भेजाना चाहते थे। उन दिनों अर्जुन सिंह बड़ी मुश्किल से प्रदेश वापस आ पाये थे और वे सीएम की कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते थे लिहाजा उन्होंने पूरी कोशिश की कि कांग्रेस हाई कमान पर दबाव बनाने में वे सफल हो जायें।
कांग्रेस के पर्यवेक्षकों को यह संदेश दे देने के लिए कि बहुमत अर्जुन सिंह के साथ है इसके लिए दो दिनों तक हरवंश सिंह के चार ईमली वाले बंगले में विधायकों का डेरा डला रहा। उन दिनों दिल्ली से पर्यवेक्षक इसलिये भोपाल आये थे क्योंकि वे राजीव गांधी के कहे अनुसार अर्जुन सिंह के स्थान पर माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। राजनीति के खिलाड़ी अर्जुन सिंह इस बात पर अड़े थे कि वे इस्तीफा नहीं देगें।
पत्रकार राजीव शुक्ला जो बाद में केन्द्रीय मंत्री बने, उन दिनों माधवराव सिंधिया के मित्र हुआ करते थे और वे पूरे घटनाक्रम के गवाह थे। शुक्ला के अनुसार राजीव गांध ने जब सिंधिया के पक्ष में मन बना लिया तब कांग्रेस पार्टी द्वारा बुलाये गये हवाई जहाज से सिंधिया भोपाल पहुंचे। शुक्ला भी उनके साथ थे। मुख्यमंत्री निवास में विधायक दल की बैठक देर रात तक चलती रही। उस शाम लगभग यह तय था कि माधवराव सिंधिया ही अगले मुख्यमंत्री होंगे।
सिंधिया भी श्यामला हिल्स पर ही अपनी समर्थक मंत्री विमला वर्मा के बंगले पर बैठे रहे और पूरे घटनाक्रम पर नज़र बनाये रहे। उन दिनों सिंधिया के सभी समर्थक विधायक होटल पलाश में रूकते थे। शाम से देर रात तक चलती रहने वाली विधायक दल की बैठक में लगभग यह माना जा रहा था कि सिंथिया की मुख्यमंत्री पद के लिए घोषणा मात्र औपचारिकता है।
उस रात नये नेता को लेकर विवाद इतना ज्यादा था कि राजीव गांधी को अगली सुबह गृहमंत्री बूटा सिंह और अपने सबसे विश्वस्त माखनलाल फोतेदार को भोपाल भेजना पड़ा। राजीव गांधी स्वयं पूरे घटनाक्रम से दुःखी थे क्योंकि उनकी बात नहीं मानी गई। अंततः एक समझौता हुआ जिसमें मोतीलाल वोरा को फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया। राजीव शुक्ला ने लिखा कि अगर उस समय सिंधिया थोड़े चालाक होते तो वे पहले ही अर्जुन सिंह को मना लेते उसके बाद हाई कमान से अपना नाम आने देते।
(Source: नईदुनिया नेटवर्क की पुरानी खबरों एवं मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब राजनीतिनामा मध्यप्रदेश से साभार)