
एंटरटेनमेंट डेस्क। हिंदी सिनेमा के इतिहास में सफलता और असफलता की कई कहानियां दर्ज हैं, लेकिन 43 साल पहले एक ऐसी फिल्म आई जिसने 'डिजास्टर' शब्द की परिभाषा ही बदल दी। यह फिल्म थी 1982 में रिलीज हुई 'जख्मी इंसान'। इस फिल्म के साथ एक ऐसा शर्मनाक रिकॉर्ड जुड़ा है जो शायद ही कभी टूटे - इसे सिनेमाघरों में लगने के महज 15 मिनट बाद ही उतार दिया गया था।
80 के दशक में अपनी खलनायिकी और कॉमिक टाइमिंग के लिए मशहूर हुए शक्ति कपूर इस फिल्म के मुख्य अभिनेता थे। उस दौर में विनोद खन्ना जैसे कलाकार विलेन से हीरो बनकर सफलता की ऊंचाइयां छू रहे थे। विनोद खन्ना के सफर से प्रेरित होकर शक्ति कपूर ने भी बतौर लीड हीरो अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया। एक इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया कि विनोद खन्ना की पर्सनालिटी देखकर उन्हें लगा था कि वे भी पर्दे पर हीरो की तरह दिख सकते हैं।
शक्ति कपूर के अनुसार, विनोद खन्ना उनके पसंदीदा विलेन थे और जब वे हीरो बने, तो शक्ति कपूर को भी लगा कि उनके अंदर भी एक लीडिंग मैन छिपा है। इसी आत्मविश्वास के साथ उन्होंने दीपक बलराज विज के निर्देशन में बनी फिल्म 'जख्मी इंसान' साइन की। शक्ति कपूर को उम्मीद थी कि यह फिल्म उनके करियर की दिशा बदल देगी, लेकिन हकीकत इसके उलट निकली।
शक्ति कपूर इस फिल्म की असफलता पर चुटकी लेते हुए बताते हैं कि फिल्म का नाम 'जख्मी इंसान' बिल्कुल सटीक साबित हुआ। इसने न केवल उन्हें, बल्कि फिल्म के निर्माता, निर्देशक और डिस्ट्रीब्यूटर्स को भी बुरी तरह 'जख्मी' कर दिया। फिल्म दोपहर 12 बजे के शो में स्क्रीन पर लगी और दर्शकों की प्रतिक्रिया और खराब गुणवत्ता के चलते 12:15 बजे ही उसे थिएटर्स से हटा लिया गया।
इस जबरदस्त फ्लॉप के बाद शक्ति कपूर का बतौर हीरो करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया। उन्होंने फिर कभी मुख्य भूमिका निभाने की हिम्मत नहीं की। स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि उन्हें दोबारा काम पाने के लिए मेकर्स के सामने विलेन के रोल के लिए गुहार लगानी पड़ी। हालांकि, इसके बाद उन्होंने विलेन और फिर कॉमेडी के जरिए बॉलीवुड में अपनी एक अमिट पहचान बनाई, लेकिन 'जख्मी इंसान' आज भी बॉलीवुड की सबसे बड़ी और सबसे तेज होने वाली फ्लॉप फिल्मों में गिनी जाती है।
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