एंटरटेनमेंट डेस्क। लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी, हिंदी सिनेमा के वो दो महान सिंगर्स हैं जिनकी आवाज आज भी लोगों के दिलों में बसती है। उनके गाने सुनते ही शांति और सुकून का एहसास होता है। यही वजह थी कि जब भी दोनों साथ में कोई गाना गाते, तो फिल्म का सुपरहिट होना लगभग तय माना जाता।
'जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा', 'झिलमिल सितारों का आंगन होगा' जैसे कई एवरग्रीन गानों ने इस बात को साबित भी किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी ये दोनों महान कलाकार आपस में बात तक नहीं करते थे। दरअसल, एक विवाद की वजह से करीब चार साल तक लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने साथ काम करना बंद कर दिया था।
प्रयाग शुक्ल की किताब ‘मोहम्मद रफी ईश्वर की आवाज’ के अनुसार, यह विवाद गानों की रॉयल्टी को लेकर हुआ था। लता मंगेशकर चाहती थीं कि गायक-गायिकाओं को भी गाने की रॉयल्टी मिले। उन्होंने यह बात रफी साहब से भी कही।
लेकिन मोहम्मद रफी इस राय से सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि सिंगर्स को उनकी मेहनत का पारिश्रमिक मिल चुका है, इसलिए गानों पर उनका अलग से कोई अधिकार नहीं बनता। रफी साहब की यह बात सुनकर लता जी नाराज हो गईं और दोनों के बीच रिश्ते खराब हो गए।
लता मंगेशकर ने रफी साहब से इतनी नाराजगी जताई कि चार साल तक उन्होंने उनके साथ कोई गाना नहीं गाया। जब भी किसी फिल्म में दोनों को साथ गाने का मौका मिलता, लता जी मना कर देतीं। धीरे-धीरे रफी साहब ने भी उनके साथ गाना गाने से किनारा कर लिया।
इस दौरान मेकर्स ने रफी साहब को सिंगर सुमन कल्याणपुरी के साथ जोड़ दिया। दोनों की जोड़ी ने कई हिट गाने दिए। यह देखकर लता मंगेशकर को चिंता होने लगी कि कहीं उनकी जगह सुमन न ले लें।
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आखिरकार, लता जी ने संगीतकार जयकिशन से मदद मांगी। उनकी पहल पर दोनों दिग्गजों के बीच सुलह हुई और उन्होंने फिर से साथ गाना शुरू किया। हालांकि, बाद में लता मंगेशकर ने एक इंटरव्यू (2012) में कहा था कि मोहम्मद रफी ने उन्हें माफीनामा लिखकर भेजा था, जिसके बाद उन्होंने यह झगड़ा खत्म किया। लेकिन इस दावे पर रफी साहब के बेटे ने आपत्ति जताई थी।