
धर्म डेस्क। छठ पूजा (Chhath Puja 2025), जो कभी केवल बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित थी, अब सीमाओं को पार कर दुनिया के कई देशों में मनाई जाने लगी है।
दुबई से लेकर मेलबर्न तक यह लोकआस्था का पर्व अपनी परंपराओं, गीतों और भक्ति से विदेशी धरती को भी पवित्र कर रहा है। प्रवासी भारतीय समुदाय न सिर्फ इस महापर्व को श्रद्धा से निभा रहा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों में भारतीय संस्कृति की जड़ें भी मजबूत कर रहा है।
'कांचा ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए...' - यह पारंपरिक छठ गीत अब सिर्फ बिहार की गलियों में नहीं, बल्कि विदेशों की हवा में भी गूंजता है। छठ पूजा अब एक वैश्विक सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है, जो हर जगह परिवार की सुख-समृद्धि और सामाजिक एकता का संदेश देती है।
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पिछले वर्ष छठ की यह आस्था ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न पहुंची। वहां पांडेय परिवार ने बिहार-झारखंड सभा मेलबर्न के सहयोग से कडकारूक पार्क, हीथर्टन में इस पर्व का आयोजन किया।
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता डॉ. एन.के. नूतन ने अपनी मधुर भक्ति-धुनों से माहौल को और भी पवित्र बना दिया। इस मौके पर अनिल पांडेय जी की पत्नी रितु बाला, बेटे अर्णय, बेटी अरण्या, और प्रवासी सहयोगी सुमित झा, मुकुंद, राजकमल, नीरज, चंद्रशेखर पांडेय समेत कई बिहारी परिवारों ने मिलकर इस आयोजन को भव्य बनाया।
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मुज़फ्फरपुर के बिबीगंज निवासी अनिल कुमार पांडेय और उनका परिवार वर्षों से विदेश में रहकर भी छठ पूजा की परंपरा को पूरी श्रद्धा से निभा रहे हैं।
दुबई के ममज़ार बीच पर 2021 और 2022 में उनके नेतृत्व में हुए छठ महापर्व के आयोजन में हजारों श्रद्धालुओं ने सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया।
समुद्र की लहरों के बीच जब 'जय छठी मइया' के स्वर गूंजे, तो ऐसा लगा मानो पूरा बिहार दुबई की रेत पर उतर आया हो।
