डिजिटल डेस्क। भारत त्योहारों की भूमि है और इन्हीं में से एक प्रमुख पर्व है गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2025), जिसे गणेशोत्सव या विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। यह त्योहार भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर दस दिनों तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
साल 2025 में गणेशोत्सव 27 अगस्त से 6 सितंबर तक मनाया जाएगा। इन दिनों घरों और सार्वजनिक पंडालों में गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। रोजाना आरती, भजन और पूजा-अर्चना के बाद, अंतिम दिन अनंत चतुर्दशी पर भव्य शोभायात्रा के साथ गणेश विसर्जन होता है।
हालांकि, महाराष्ट्र को गणेशोत्सव का केंद्र माना जाता है, लेकिन भारत के अलग-अलग राज्यों में भी इसे खास अंदाज में मनाया जाता है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-
मुंबई की सड़कों पर गणेशोत्सव के दौरान सिर्फ और सिर्फ 'गणपति बप्पा मोरया' की गूंज सुनाई देती है। यहां के प्रसिद्ध पंडाल जैसे - लालबागचा राजा, गणेश गली मुंबईचा राजा, अंधेरीचा राजा और खेतवाड़ी गणराज लाखों भक्तों की भीड़ खींचते हैं। दसवें दिन अरब सागर की ओर निकलने वाली भव्य शोभायात्रा देखने लायक होती है, जो एक कार्निवल जैसा नजारा पेश करती है।
राजधानी दिल्ली में भी गणेश चतुर्थी की धूम देखने लायक होती है। यहां के मंदिरों और पंडालों में भगवान गणेश की विशाल प्रतिमाओं के साथ भव्य सजावट की जाती है। वेद मंत्रों और उपनिषदों की ध्वनि के बीच भक्त गणेश जी की पूजा-अर्चना करते हैं। लोग भक्ति में झूमते और नृत्य करते हुए गणेश उत्सव का आनंद लेते हैं।
गोवा में गणेश चतुर्थी का जश्न महाराष्ट्र जितना ही भव्य होता है। यहां मार्सेल और मापुसा जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान घरों की सफाई, रिश्तेदारों का मिलना-जुलना और मंदिरों में पूजा-पाठ का सिलसिला चलता है। यहां आने वाले पर्यटक भी रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों और पारंपरिक उत्सवों का हिस्सा बनते हैं।
तमिलनाडु में गणेश चतुर्थी का उत्सव मंदिरों में विशेष आरती और पूजा के साथ मनाया जाता है। यहां गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले देवी गौरी की पूजा की परंपरा है, जिसे गौरी हब्बा कहा जाता है। मान्यता है कि पहले घर में देवी गौरी का स्वागत होता है और अगले दिन भगवान गणेश का।
कर्नाटक में भी गणेश उत्सव देवी गौरी की पूजा से शुरू होता है। यहां लोग मोदकम, पायसम और गोज्जू जैसी पारंपरिक मिठाइयां बनाते हैं और उन्हें प्रसाद के रूप में बांटते हैं। भक्ति और परंपरा से जुड़ा यह त्योहार पूरे राज्य में एकता और उल्लास का संदेश देता है।
पुणे भी गणेश चतुर्थी के भव्य आयोजनों के लिए प्रसिद्ध है। यहां विभिन्न मंडलों में विशेष पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भजन-कीर्तन आयोजित होते हैं। भक्त भगवान गणेश को मोदक और लड्डू अर्पित करते हैं। साथ ही पारंपरिक नृत्य और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां इस पर्व को और खास बना देती हैं।
गणेश चतुर्थी पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन कोंकण क्षेत्र (महाराष्ट्र और गोवा का समुद्री इलाका) में इसका महत्व और भी खास माना जाता है। यहां यह त्योहार सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि पारिवारिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उत्सव के रूप में पीढ़ियों से मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं, कोंकण में गणेशोत्सव को खास बनाने वाली बातें -
कोंकण में हर घर में गणपति बप्पा का स्वागत बड़े हर्षोल्लास के साथ किया जाता है। लोग मिट्टी से बनी सुंदर प्रतिमाएं घर लाते हैं और पूरे घर को फूलों, पत्तियों और रंग-बिरंगी सजावट से सजाते हैं।
कोंकण के गणेशोत्सव में खास व्यंजन पकाए जाते हैं। खासकर उकडीचे मोदक, नारियल-गुड़ की मिठाइयां, पातोली और विभिन्न पारंपरिक पकवान भगवान गणेश को भोग के रूप में अर्पित किए जाते हैं।
यह पर्व कोंकण में परिवारों को जोड़ने का काम करता है। जो लोग काम या पढ़ाई के लिए शहरों में रहते हैं, वे भी इस अवसर पर अपने पैतृक घर लौटते हैं और पूरे परिवार के साथ उत्सव मनाते हैं।
गणेशोत्सव के दौरान गांव-गांव में भजन, कीर्तन, नाटक और लोककला के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। ढोल-ताशों और लेज़ीम की धुन पर लोग भक्ति और आनंद में डूब जाते हैं।
कोंकण में गणपति की मूर्तियां ज्यादातर स्थानीय कारीगरों द्वारा नदी की मिट्टी से बनाई जाती हैं। इन्हें पर्यावरण अनुकूल माना जाता है और विसर्जन के बाद ये आसानी से पानी में विलीन हो जाती हैं।
अनंत चतुर्दशी के दिन जब बप्पा को विदा किया जाता है तो समुद्र तटों और नदियों पर उमड़ता हुआ जनसैलाब एक अद्भुत दृश्य पेश करता है। भक्त 'गणपति बप्पा मोरया, पुन्हा वर्षी लवकर या' की गूंज के साथ भावुक होकर बप्पा को विदाई देते हैं।
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गणेश चतुर्थी का नाम लेते ही सबसे पहले महाराष्ट्र का ही ख्याल आता है। यहां यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है बल्कि सामाजिक एकता, संस्कृति और उत्साह का प्रतीक भी है। महाराष्ट्र में गणपति बप्पा का आगमन हर गली, मोहल्ले और घर को रौशन कर देता है।
महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की शुरुआत को नई पहचान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने दी थी। आज़ादी की लड़ाई के समय उन्होंने गणेश चतुर्थी को सामाजिक एकता और जागरूकता का माध्यम बनाया। तभी से महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेशोत्सव (Sarvajanik Ganeshotsav) की परंपरा शुरू हुई।
महाराष्ट्र के हर शहर और गांव में बड़ी-बड़ी मंडलियां गणेशोत्सव का आयोजन करती हैं। पुणे, मुंबई, नागपुर और कोल्हापुर में गणेश पंडाल अपनी भव्यता, सजावट और सामाजिक संदेशों के लिए प्रसिद्ध हैं।
मुंबई के लालबागचा राजा को देशभर से लोग दर्शन करने आते हैं। इसी तरह सिद्धिविनायक मंदिर में भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। महाराष्ट्र के कई प्रसिद्ध गणपति मंदिर इस पर्व को और खास बनाते हैं।
यहां के पंडालों में अलग-अलग थीम पर सजावट की जाती है - कभी ऐतिहासिक स्थल, कभी सामाजिक मुद्दों पर संदेश, तो कभी धार्मिक झांकियां। यह रचनात्मकता महाराष्ट्र के गणेशोत्सव को खास बनाती है।
महाराष्ट्र में गणपति उत्सव की सबसे बड़ी पहचान है - ढोल-ताशों की गूंज और लेज़ीम नृत्य। विसर्जन के समय पूरा माहौल ढोल-ताशों की धुन से गूंज उठता है।
महाराष्ट्र में गणेशोत्सव के दौरान खासकर मोदक का विशेष महत्व है। माना जाता है कि गणपति बप्पा को मोदक बेहद प्रिय हैं। साथ ही पूरनपोली और अन्य पारंपरिक पकवान भी बनाए जाते हैं।
गणेश चतुर्थी से शुरू हुआ उत्सव 10 दिनों तक चलता है और अनंत चतुर्दशी के दिन धूमधाम से विसर्जन होता है। उस समय "गणपति बप्पा मोरया, पुन्हा वर्षी लवकर या" की गूंज पूरे महाराष्ट्र में सुनाई देती है।
गणेश चतुर्थी का पर्व सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि कई देशों में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जहां भारतीय समुदाय अधिक संख्या में है, वहां यह उत्सव सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी बेहद खास बन जाता है। आइए जानते हैं उन देशों के बारे में, जहां बप्पा की गूंज सुनाई देती है -
भारत का पड़ोसी देश नेपाल अपनी संस्कृति और परंपराओं में भारत से काफ़ी समानता रखता है। यहां गणेश चतुर्थी को ‘विनायक चतुर्थी’ के नाम से मनाया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, शुभ और लाभ का प्रतीक माना जाता है।
इस दिन भक्त विशेष रूप से काठमांडू स्थित गणेश मंदिर और चांगु नारायण मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। नेपाल में लोग बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति के लिए गणपति बप्पा की आराधना करते हैं।
अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी तट पर स्थित मॉरीशस को अक्सर ‘छोटा भारत’ कहा जाता है, क्योंकि यहां की अधिकांश आबादी भारतीय मूल की है। यहां गणेश चतुर्थी को बड़े सामुदायिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भारत की तरह ही यहां भी भव्य सार्वजनिक पंडाल और कलात्मक गणेश प्रतिमाओं की स्थापना होती है।
दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व के दौरान भक्ति गीत, प्रार्थनाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। अंत में धूमधाम से गणेश विसर्जन किया जाता है।
बालीनीज हिंदू धर्म में भगवान गणेश को ‘देवता गणेश’ कहा जाता है और उन्हें ज्ञान, बुद्धि और कला का देवता माना जाता है। यहां गणेश चतुर्थी भारत की तरह नहीं मनाई जाती, लेकिन विशेष पूजा-अर्चना जरूर होती है।
लोग मंदिरों में जाकर प्रसाद चढ़ाते हैं और प्रार्थना करते हैं। बाली की कला और संस्कृति में गणेश जी का चित्रण बेहद सुंदर तरीके से देखने को मिलता है।
थाईलैंड में भगवान गणेश को ‘फिकानेट’ के नाम से जाना जाता है और उन्हें सफलता और समृद्धि का देवता माना जाता है। हालांकि यहां गणेश चतुर्थी भारत जैसी भव्यता से नहीं मनाई जाती, लेकिन गणेश पूजा थाई संस्कृति का अहम हिस्सा है।
बैंकॉक और अन्य शहरों में कई मंदिर हैं जहां लोग गणेश जी की पूजा करते हैं। खास बात यह है कि थाईलैंड में दुनिया की सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा भी मौजूद है।
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