
लाइफस्टाइल डेस्क। जैसे-जैसे हवा में स्मॉग, धूल के महीन कण (PM 2.5) और हानिकारक रसायनों का स्तर बढ़ रहा है, हमारी आंखों पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। आंखों में चुभन, पानी आना और लाल होना अब एक आम समस्या बन गई है। अक्सर हम राहत पाने के लिए कुछ ऐसे कदम उठा लेते हैं जो फायदे की जगह नुकसान पहुंचा देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, आंखों की सुरक्षा के लिए 'क्या करना है' से ज्यादा जरूरी यह जानना है कि 'क्या नहीं करना है'।
आंखों में खुजली होने पर उन्हें रगड़ना सबसे खतरनाक हो सकता है। प्रदूषण के बारीक कण आंखों की सतह पर मौजूद होते हैं। रगड़ने से ये कण कॉर्निया पर खरोंच (Micro-scratches) पैदा कर सकते हैं, जिससे घाव या गंभीर इन्फेक्शन हो सकता है।
केमिस्ट से पूछकर या पुराने रखे हुए आई ड्रॉप्स डालना जोखिम भरा है। कई ड्रॉप्स में स्टेरॉयड होते हैं, जो लंबे समय में मोतियाबिंद या ग्लूकोमा (काला मोतिया) का कारण बन सकते हैं। केवल डॉक्टर द्वारा सुझाई गई 'लुब्रिकेटिंग ड्रॉप्स' का ही प्रयोग करें।
अक्सर लोग आंखों में गुलाब जल, नींबू का रस या अन्य घरेलू चीजें डालते हैं। ध्यान रहे कि आंखों का pH स्तर बहुत संवेदनशील होता है। असुरक्षित तरल पदार्थ इन्फेक्शन को निमंत्रण दे सकते हैं। बाहरी ठंडी सिकाई ठीक है, लेकिन आंख के अंदर कुछ भी न डालें।
अगर हवा में प्रदूषण ज्यादा है और आंखों में हल्की भी जलन है, तो कॉन्टैक्ट लेंस पहनने से बचें। लेंस प्रदूषण के कणों को सोख लेते हैं और उन्हें सीधे आंखों के संपर्क में रखते हैं, जिससे इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। कुछ दिनों के लिए चश्मे का उपयोग करना बेहतर है।
धूप का चश्मा केवल स्टाइल के लिए नहीं है। प्रदूषण के दिनों में यह एक 'शील्ड' की तरह काम करता है। यह हवा के सीधे झोंकों और धुएं को आंखों में जाने से रोकता है, जिससे आंखों का सूखापन (Dryness) कम होता है।
प्रदूषण से थकी हुई आंखों पर मोबाइल या लैपटॉप का तनाव और भारी पड़ता है। 20-20-20 नियम अपनाएं: हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें। इससे आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलता है।
बाहर से आने के बाद चेहरे को साफ पानी से धोएं, लेकिन आंखों के अंदर तेज पानी के छोंपा (Splashes) न मारें। इससे आंखों की प्राकृतिक नमी कम हो सकती है। पलकों के किनारे को धीरे से गीले रुई के फाहे से साफ करना पर्याप्त है।
अगर आंखों में लाली, तेज दर्द, धुंधलापन या पस (Pus) आने की समस्या 24 घंटे से ज्यादा रहे, तो इसे सामान्य प्रदूषण का असर मानकर न बैठें। यह 'कंजक्टिवाइटिस' (आंख आना) का संकेत हो सकता है। तुरंत आई स्पेशलिस्ट से संपर्क करें।