
लाइफस्टाइल डेस्क। चाहे आप किसी चमकते दफ्तर में हों, बड़े से शॉपिंग मॉल में, किसी अस्पताल में या फिर किसी लग्जरी होटल में, एक चीज है जो हर लिफ्ट में जरूर दिखाई देती है और वह है शीशा। हम अक्सर सोचते हैं कि यह बस एक सजावट का हिस्सा है, यानी एक फैंसी टच। लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। लिफ्ट के अंदर शीशे की मौजूदगी के पीछे न केवल गहरी सोच है, बल्कि मनोवैज्ञानिक और सुरक्षा संबंधी वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। आइए इन पर एक नजर डालते हैं।
लिफ्ट के छोटे केबिन में घूमना या पीछे की ओर मुड़ना व्हीलचेयर यूजर्स के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकता है। जगह कम होने के कारण सीधा बैक करना मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में शीशा उनकी सबसे बड़ी मदद करता है। शीशे में पीछे का हिस्सा साफ दिखाई देता है, जिससे वे बिना किसी रुकावट के आसानी से बैक कर सकते हैं, टर्न ले सकते हैं, या दरवाजे की ओर निकलना सुनिश्चित कर सकते हैं। इस तरह शीशा उनकी यात्रा को सुरक्षित और सहज बनाता है।
लिफ्ट के अंदर बंद और तंग माहौल कई लोगों में बेचैनी या घबराहट पैदा कर सकता है, जिसे 'क्लॉस्ट्रोफोबिया' भी कहते हैं। शीशा लिफ्ट को 'विजुअली बड़ा' दिखाता है। जब जगह खुली महसूस होती है, तो घुटन और घबराहट अपने-आप कम होने लगती है, जिससे मन शांत और तनावमुक्त रहता है।
लिफ्ट में शीशा सिर्फ दिखावे के लिए नहीं है, बल्कि यह सुरक्षा का एक अतिरिक्त साधन भी है। शीशे की वजह से केबिन का हर कोना नजर आता है। आप आसानी से देख सकते हैं कि आपके ठीक पीछे कौन खड़ा है या दरवाजे के पास कौन आ रहा है। यह जागरूकता किसी भी असहज या असुरक्षित स्थिति को रोकने में मदद करती है, खासकर रात के समय या कम भीड़ वाली बिल्डिंग में। जब लोग एक-दूसरे को साफ देख पाते हैं, तो माहौल ज्यादा सुरक्षित और भरोसेमंद लगता है।
लिफ्ट की सवारी छोटी होती है, लेकिन खाली दीवारें देखते हुए अक्सर यह लंबी और उबाऊ महसूस होती है। शीशा इस नीरसता को तोड़ देता है। लोग अपने आप ही अपने रिफ्लेक्शन पर नजर डाल लेते हैं, खुद को चेक करते हैं या दूसरे लोगों को देखते हैं।
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लिफ्ट में चढ़ते ही लोग अक्सर एक सहज क्रिया करते हैं: अपने आप को एक बार चेक कर लेते हैं। लोग अपने कपड़े ठीक कर लेते हैं, बाल सेट कर लेते हैं, या अपनी अंतिम उपस्थिति को जांच लेते हैं। यह छोटी-सी सुविधा कई लोगों के लिए रोजमर्रा का हिस्सा है।