
योगेश कुमार गौतम, नईदुनिया, बालाघाट। मुठभेड़ में मारे जाने का डर और सुरक्षाबलों की चौतरफा घेराबंदी से मध्य प्रदेश के बालाघाट में माओवाद की सांसें फूल रही हैं। पुलिस का फोकस छोटे माओवादियों के साथ अब उनके लीडरों पर भी है। बालाघाट रेंज के आईजी संजय कुमार ने बताया कि चंदू, रामधेर, दीपक जैसे बड़े माओवादी अभी जंगल में भागते फिर रहे हैं। वहीं छोटे कैडर के माओवादी जान बचाने के लिए हथियार डाल रहे हैं।
जंगल में पहले जहां टांडा दलम, मलाजखंड दमल और केबी (कान्हा भोरमदेव) डिवीजन की सक्रियता थी, वहां अब बड़ी संख्या में सुरक्षाबल की तैनात की गई है। पुलिस की निगाह उन ग्रामीणों पर है, जो अब भी माओवादियों का सहयोग कर रहे हैं। ऐसे समर्थकों पर विशेष निगरानी रखी जा रही है। माओवादियों का सहयोग करते पाए जाने पर उन पर सख्त कार्रवाई होगी।
19 नवंबर को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के जंगल क्षेत्र में हुई मुठभेड़ के बाद इस इलाके में सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ा दी गई है। छत्तीसगढ़ की खैरागढ़ और मध्य प्रदेश की बालाघाट पुलिस संयुक्त सर्चिंग ऑपरेशन चला रही है। आईजी के अनुसार, खैरागढ़-बालाघाट सीमा क्षेत्र के अलावा भी जिलेभर के प्रभावित व संदिग्ध जंगल क्षेत्रों में सुरक्षा बल अब माओवादियों को घेरने की तैयारी कर रहे हैं। लंबे और प्रभावी सर्च ऑपरेशन के कारण माओवादी एक ठिकाने पर चैन से नहीं बैठ पा रहे हैं। उनके सामने जान बचाने के लिए आत्मसमर्पण करना ही आखिरी विकल्प है।
बालाघाट एसपी आदित्य मिश्रा ने बताया कि माओवादियों के पास आत्मसमर्पण या मौत के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा। सुरक्षाबलों के दबाव का ही नतीजा है कि माओवादियों को बार-बार अपने ठिकाने बदलने पड़ रहे हैं। माओवादियों को ग्रामीणों से मिलने वाला सहयोग भी अब लगभग बंद हो गया है। आईजी का कहना है कि माओवादी हथियार डालें और मध्य प्रदेश की समर्पण व पुनर्वास नीति का लाभ लेकर अच्छा जीवन जिएं।