
नईदुनिया प्रतिनिधि, बालाघाट: मध्य प्रदेश में खात्मे की कगार पर पहुंच चुका माओवाद अब घुटने टेकने पर मजबूर हो चुका है। 28 नवंबर को महाराष्ट्र के गोंदिया में आत्मसमर्पण करने वाले दर्रेकसा दलम के 11 माओवादियों में बालाघाट के ग्राम राशिमेटा की रहने वाली संगीता भी शामिल है। भले ही संगीता ने मध्यप्रदेश में हथियार न डालकर महाराष्ट्र को चुना, लेकिन बालाघाट पुलिस द्वारा उसे लंबे समय से समाज की मुख्य धारा में लाने के प्रयास जरूर सफल हुए हैं।
खास बात है कि 19 नवंबर को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के जंगल में जिस माओवादी मुठभेड़ में बालाघाट हाकफोर्स के निरीक्षक आशीष शर्मा बलिदान हुए थे, उसमें संगीता समेत सरेंडर करने वाले सभी 11 माओवादी भी शामिल थे। संगीता (उम्र 38-40) पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र राज्य में कुल 14 लाख रुपए का इनाम घोषित है। उस पर 20 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं।
संगीता ने एमएमसी जोन के प्रवक्ता अनंत उर्फ विकास नागपुर के साथ अपने दलम के 10 सहयोगियों के साथ आत्मसमर्पण किया है। हालांकि, बताया जा रहा है कि संगीता का मप्र को छोड़कर महाराष्ट्र में आत्मसमर्पण का फैसला उसके स्वयं का फैसला नहीं है। माओवादियों के इस सामूहिक सरेंडर को सुरक्षाबल और पुलिस के बढ़ते दबाव, एनकाउंटर में मारे जाने का डर और राशन-पानी की किल्लत से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसने माओवादियों को अब हथियार डालने पर विवश कर दिया है।
पुलिस जानकारी के अनुसार, संगीता 2007 में माओवादी संगठन में शामिल हुई थी। वह बालाघाट सहित छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के जंगलों में खोखली विचारधारा के साथ घूमती रही। वह बालाघाट में हुई कई माओवादी घटनाओं में भी शामिल रह चुकी है। बालाघाट पुलिस ने संगीता को सही राह पर लाने के कई प्रयास किए थे।
पुलिस अधीक्षक आदित्य मिश्रा की पहल पर शुरू किए 'एकल सुविधा केंद्र' के जरिए शिविर लगाकर संगीता की मां का मोतियाबिंद का आपरेशन कराया था, संगीता के परिजनों से मिलकर उसे सरेंडर करने के लिए प्रेरित भी किया था। आखिरकार, संगीता की 18 साल बाद 'घर वापसी' हुई है। वह अपने समूह में बेहतर चिकित्सकीय सेवा देने में माहिर थी। समर्पण करने के बाद प्रारंभिक रूप में संगीता को महाराष्ट्र सरकार द्वारा छह लाख रुपये की राशि दी गई है।
कभी माओवादियों की शरणस्थली माने जाने वाले बालाघाट में 2016-17 के दौर में 200 से 250 माओवादियों का मूवमेंट था। बालाघाट में 'लाल आतंक' का कहर हर मोर्चे पर था। संख्या में अधिक होने के कारण माओवादी हमेशा से सुरक्षाबलों पर हावी रहे, लेकिन मप्र पुलिस की आक्रामक रणनीति निर्णायक साबित हुई।
माओवादी विरोधी अभियान में तेजी, सघन सर्चिंग, तीन साल में 20 से अधिक माओवादियों का एनकाउंटर, माओवादी डंप की लगातार बरामदगी ने उन्हें लकवाग्रस्त कर दिया। यही कारण है कि पहले बालाघाट में कान्हा भोरमदेव दलम, टाडा दलम, परसवाड़ा दलम थे, जो पहले ही खत्म हो चुके हैं। दर्रेकसा दलम के माओवादी अपनी जान बचाकर सरेंडर कर रहे हैं, जिससे उनका अस्तित्व लगभग खत्म हो चुका है।
पुलिस के अनुसार, बालाघाट में अब सिर्फ मलाजखंड दलम है, जिसमें सिर्फ 23 माओवादी सक्रिय हैं। पुलिस का मानना है कि मार्च 2026 से पहले बचे-कुचे माओवादी भी हथियार डालेंगे या सुरक्षाबलों की ठोस कार्रवाई का सामना करेंगे।
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महाराष्ट्र के गोंदिया में आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों में बालाघाट की संगीता भी है। बालाघाट में मिशन 2026 के अनुरूप अभियान जारी है। माओवाद अब आखिरी सांसे गिन रहा है। ग्रामीण भी उनकी मदद नहीं करना चाहते। ग्रामीण भी चाहते हैं कि बालाघाट से माओवाद का दंश हमेशा के लिए खत्म हो।
- आदित्य मिश्रा, पुलिस अधीक्षक, बालाघाट