
*प्राकृतिक सौंदर्य के बीच है बड़ी माता व छोटी माता का प्राचीन मंदिर
अंजड़। नईदुनिया न्यूज
नगर के समीप ही सतपुड़ा के शिखर पर विराजमान है नगरी माता। प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित पर्वत शिखर पर बड़ी माता व छोटी माता का प्राचीन मंदिर है। वहां नवरात्र में हर साल हजारों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। माता की आराधना में श्रद्धालुजन दूर-दराज से चले आते हैं, उसकी कहानी व इतिहास भी अनूठा है।
नगरी माता की पहाड़ी के उत्तरी ढलान पर बसा अंजड एक छोटा सा कस्बा था। जहां धनगर, गवली, वागरी व अन्य समाज के अलावा राजपूत समाज की बहुलता थी। उस समय राजपूतों के मुखिया रायसेलजी राजपूत संपन्ना कृषक थे। उनका एक लड़का जेतसिंह था। एक दिन सर्प ने जेतसिंह को डस लिया, उसके उपचार के लिए वैद्य-हकीमों को बुलाया गया। सांप का जहर उतारने का प्रयास कि या गया, लेकि न लाभ नहीं हुआ। उपचार में वैद्य-हकीमों ने असमर्थता जता दी। इससे हताश और निराश रायसेलजी अपने पुत्र की मृत्यु से दुखी होकर मूर्छित हो गिर पड़े। घबराए लोगों ने पानी के छींटे मारे और रायसेल जी को होश में लाए।
रायसेलजी ने बताया कि अचेतावस्था में उन्होंने एक दिव्य प्रकाश पुंज देखा। इसके अंदर देवी के दर्शन हुए। देवी ने मुझसे कहा कि मेरी छोटी बहन नगुबाई का स्थान इस पहाड़ी की चोटी पर है। यदि आप मेरी बहन की वहां स्थापना करने का संकल्प करो तो तेजसिंह जीवित हो सकता है। रायसेलजी इतना कहकर चुप हो गए। उपस्थित लोगों ने कहा कि मुखियाजी आप संकल्प लें तब रायसेलजी ने जल हाथ में लेकर कहा कि माता यदि मेरा पुत्र जीवित हो गया तो आपकी मंशा अनुसार दिन निकलने से पहले पहाड़ी पर आपकी विधि-विधान से स्थापना करूंगा, यह कहकर जल मृत तेजसिंह छिड़क दिया और तेजसिंह की सांसें चलने लगी। उपस्थित जनसमुदाय ले माता नगुबाई के जयकारे लगाए।
रात्रि में की विधि-विधान से स्थापना
नगरी माता पहाड़ी पर उस समय घना जंगल हुआ करता था। जंगली जानवरों का खतरा रहता था। लोगों ने तय कि या कि रात्रि में शोर शराबा करते हुए पहाड़ी पर पहुंचा जाए। मशालें ढोल नगाड़ों और जिसके जो हाथ आया माता की जयकारे करता निकल पड़ा। वहां पहुंचकर देवी का पिंड रूपी स्वरूप मिला। उसको ब्राह्मणों से विधिविधान से पूजा कर स्थापित कि या, जो आज भी विद्यमान है। रायसेलजी ने संवत 1509 में माताजी की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई थी। मान्यता है कि तबसे माता के दरबार में सच्चे मन से कामना करने वालों के मनोरथ माता अवश्य पूरा करती है। इसके अनेक प्रमाण हैं। संवत 1547 में श्यामसिंह राजपूत की रानी सोलखणी रतनकु ंवर बा ने नगर के प्रसिद्ध राज कारीगर चुन्नीलाल से नगरीमाता मंदिर का निर्माण करवाकर जनता को समर्पित कि या था।