
सौरभ सोनी, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश की पुण्य सलिला मां नर्मदा मैली हो रही है। इसकी मुख्य वजह मानव जनित गंदगी और उसके उपचार के उपायों में कमी है। नर्मदा नदी के 861 घाटों में से महज 19.97 प्रतिशत पर ही शौचालय की व्यवस्था है। 80 प्रतिशत घाटों पर शौचालय नहीं है। विशेषकर महिलाओं के लिए अलग से शौचालय नहीं है। इसके अलावा नर्मदा के घाटों पर अन्य बुनियादी सुविधाओं की भी व्यापक कमी है। 68.64 प्रतिशत घाटों पर बैठने की व्यवस्था नहीं है।
केवल 11 प्रतिशत घाटों पर ही कपड़े बदलने की सुविधा है। यह तीर्थयात्रियों को सुविधा और सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती है। प्राकृतिक और पर्यावरणीय समस्याओं की बात करें तो 76 प्रतिशत घाटों पर कचरा प्रबंधन प्रणाली नहीं है। 66 प्रतिशत घाटों के पास रासायनिक खेती के कारण जल प्रदूषण का खतरा है। इससे न केवल पर्यावरणीय प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि घाटों की पवित्रता भी प्रभावित हो रही है।
807 घाटों पर सुरक्षा संकेतक और अवरोधक की व्यवस्था नहीं है, जो तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है। इसके अलावा, रात के समय पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था नहीं है, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ सकता है। अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान (एग्पा) की नर्मदा घाट सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह स्थिति सामने आई है।
मध्य प्रदेश के 16 जिलों- अनूपपुर, डिंडोरी, मंडला, सिवनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन, नर्मदापुरम, हरदा, सीहोर, देवास, खंडवा, खरगोन, धार, बड़वानी एवं आलीराजपुर में किए गए सर्वेक्षण में मिली कमियों को दूर करने के लिए एग्पा ने शासन को नर्मदा के घाटों के संरक्षण एवं जीर्णोद्धार के लिए चरणबद्ध रूप से योजना निर्मित करने की आवश्यकता बताई है। वहीं प्रत्येक जिले में माडल घाट की स्थापना का भी सुझाव दिया है।
घाटों पर स्थित धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण भी पर्याप्त रूप से नहीं हो रहा है। केवल 22 प्रतिशत घाटों पर नर्मदा आरती का आयोजन होता है। 78 प्रतिशत घाटों पर नर्मदा आरती के आयोजन की व्यवस्था ही नहीं है। 33 प्रतिशत वृहद घाटों पर कोई दिशा संकेतक अथवा सूचना पटल नहीं है, जिससे पर्यटकों की धार्मिक जिज्ञासाओं का समाधान नहीं होता है एवं उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
राज्य सरकार ने निर्मल गंगा की तर्ज पर निर्मल नर्मदा योजना बनाई है। यह योजना नेशनल रिवर कंजरवेशन प्रोजेक्ट के अंतर्गत नर्मदा नदी की स्वच्छता के लिए वर्ष 2025 को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। नर्मदा किनारे दोनों ओर प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है और वृहद स्तर पर पौधरोपण किया जा रहा है। इस योजना पर पहले चरण में 2459 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
नदी से लगे शहरों में अधिक से अधिक आवासों को नजदीक के सीवरेज प्लांट से जोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रदेश में नर्मदा नदी के अंतर्गत 54 शहरी क्षेत्र और 818 ग्रामीण क्षेत्र आते हैं। योजना में 27 जिलों के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
नर्मदा नदी मप्र की जीवनरेखा मानी जाती है। नर्मदा का उद्गम अनूपपुर जिले में स्थित अमरकंटक से हुआ है। लगभग 1,312 किलोमीटर की यात्रा के बाद नर्मदा गुजरात में अरब सागर में गिरती है। नर्मदा का 87 प्रतिशत प्रवाह क्षेत्र मध्य प्रदेश में, 11 प्रतिशत प्रवाह क्षेत्र गुजरात में और दो प्रतिशत प्रवाह क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य में आता है।
पश्चिम की ओर बहने वाली नर्मदा नदी का पौराणिक, ऐतिहासिक, और धार्मिक महत्व भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। 'रेवा' के नाम से प्रसिद्ध यह नदी लाखों लोगों के लिए आस्था का केंद्र है।