Bhopal News: लक्ष्मी पूजन में इस्तेमाल होने वाला यह कमल नहीं कुमुदिनी है, 20 साल पहले लगाई थीं 07 जड़ें, आज सत्तर हजार फूल खिल रहे
लहारपुर बांध क्षेत्र में बहुतायत में पनप रहे कुमुदिनी पुष्प। जलीय पुष्प की 70 प्रजातियां और कई रंग हैं।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Thu, 09 Nov 2023 04:14:47 PM (IST)
Updated Date: Thu, 09 Nov 2023 04:14:47 PM (IST)
HighLights
- कमल के फूल और पत्ते दोनों पानी की सतह से ऊपर उठते हैं।
- कुमुदिनी के फूल जल की सतह पर ही तैरते रहते हैं।
- गुलाबी कमल हमारा और सफेद कुमुदिनी इटली का राष्ट्रीय फूल है।
भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता लक्ष्मी को कमल का पुष्प अति प्रिय है। दीपावली पर मां लक्ष्मी के पूजन में कमल का फूल भी उपयोग किया जाता है। लेकिन कमल का फूल आसानी से नहीं मिलता। ऐसे में उससे मिलते-जुलते कुमुदिनी पुष्प की मांग दीपावली के मौके पर बढ़ जाती है। कुमुदिनी की 70 प्रजातियां और कई रंग हैं। नील कमल भी इसी की प्रजाति है। इसे अंग्रेजी में वाटरलिली कहते हैं।
कमल और कुमुदनी में यह है फर्क
वनस्पतियों पर शोध करने वाले डा. सुदेश वाघमारे बताते हैं कि कमल और कुमुदिनी, दोनों ही जलीय पुष्पमय पौधे हैं। कमल के फूल और पत्ते दोनों पानी की सतह से ऊपर उठते हैं, वहीं कुमुदिनी के फूल जल की सतह पर ही तैरते रहते हैं। कमल का फूल एक फीट तक परिधि में हो सकता है और पानी की सतह से पांच फीट तक उपर उठ सकता है। इसकी 70 प्रजातियां पाई जाती हैं। कुमुदिनी - वाटरलिली की जड़ें पानी के भीतर मृदा में अवस्थित होती हैं तथा पत्तियां व पुष्प जल सतह पर तैरते रहते हैं। गुलाबी कमल हमारा और सफेद कुमुदिनी इटली का राष्ट्रीय फूल है।
लहारपुर बांध में है प्रचुरता
राजधानी भोपाल का लहारपुर बांध जहां सैकड़ों किसानों के खेतों में पानी पहुंचाता है, वहीं 15-20 मछुआ परिवारों के जीवन-यापन का भी साधन है। 75 वर्षीय भागचंद रैकवार बताते हैं कि उन्होंने बीस साल पहले सात जड़ें गुलाबी कुमुदिनी के फूल की जबलपुर से लाकर लगाई थीं और अब लहारपुर बांध के 30 एकड़ क्षेत्र में 70 हजार से ज्यादा फूल खिल रहे हैं।
दिवाली से एक दिन पूर्व तोड़ते हैं
वे बताते हैं कि यह कमल के फूल के नाम से ही बिकता है, इसके फूलों को डंडी सहित दीपावली पूजा के लिए उसी लक्ष्मी पूजा से एक दिन पूर्व तोड़ा जाएगा। वह बताते हैं कि हमारी मछुआ समिति में 20 परिवार हैं वे इसी बांध में इन फूलों की खेती और मछली पालन से जीवन-यापन करते हैं। इन दिनों इसकी ज्यादा देखरेख करनी पड़ती है। यहां होने वाला कचरा इनका सबसे बड़ा दुश्मन है। इन्हें फैलने के लिए कचरा पानी से हटाना पड़ता है। अब हमें यहां बीज नहीं लगाना पड़ता। प्रतिवर्ष ये फूल स्वयं ही बड़ी संख्या में खिलने लगते हैं।