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नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल के डॉक्टरों ने एक कैंसर मरीज के जीवन में नई उम्मीद जगाई है। जिस मरीज की रीढ़ की हड्डी कैंसर की वजह से टूटकर लगभग दब गई थी और वह असहनीय दर्द के कारण बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहा था, उसी मरीज पर डाक्टरों ने केवल 30 मिनट का एक अद्भुत ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के तुरंत बाद मरीज न सिर्फ चलने लगा, बल्कि उसका पुराना दर्द भी लगभग 80 प्रतिशत खत्म हो गया।
यह प्रक्रिया डॉ. अनुज जैन (अतिरिक्त प्रोफेसर एवं इंचार्ज, पेन मेडिसिन यूनिट, एनेस्थीसिया विभाग, एम्स भोपाल) के नेतृत्व में की गई। टीम में डॉ. निरव, डॉ. गोपी और डॉ. निखिल शामिल रहे। कैंसर से कुचली गई थी रीढ़ की हड्डी डाक्टरों ने बताया कि रीढ़ की हड्डी का टूटना (फ्रैक्चर) आमतौर पर बुढ़ापे में होता है, लेकिन जब यह कैंसर के कारण होता है, तो स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है। कैंसर कोशिकाएं हड्डियों को खोखला कर देती हैं, जिससे रीढ़ की हड्डी (वर्टेब्रल बोन) कमजोर होकर कुचल जाती है।
मरीज को इतना तेज दर्द था कि वह करवट भी नहीं बदल पा रहा था। तेज दर्द निवारक इंजेक्शन मार्फीन दिए जाने पर भी मरीज को कोई राहत नहीं मिल रही थी। एम्स के न्यूरोसर्जरी विभाग ने जांच के बाद पाया कि पारंपरिक इलाज से राहत मिलना असंभव है। इसलिए डॉक्टरों ने काइफोप्लास्टी नामक आधुनिक तकनीक से इलाज करने का फैसला किया।
काइफोप्लास्टी एक मिनिमली इनवेसिव (बिना बड़े चीरे वाली) प्रक्रिया है। इसे ''गुब्बारा तकनीक'' भी कह सकते हैं। सबसे पहले रीढ़ की टूटी हुई हड्डी में एक छोटी सुई से रास्ता बनाया गया। इसके बाद एक छोटा गुब्बारा अंदर डालकर फुलाया गया। इस गुब्बारे ने दबी हुई हड्डी को उसकी सही ऊंचाई पर वापस उठा दिया। गुब्बारा हटाने के बाद खाली हुई जगह को एक खास बोन सीमेंट से भर दिया गया, जो 10-15 मिनट में सेट होकर हड्डी को तुरंत मजबूत कर देता है। डॉक्टरों के अनुसार, यह ऑपरेशन सिर्फ 30 मिनट में पूरा हुआ और मरीज को तुरंत दर्द से राहत मिली।
डॉक्टरों ने बताया कि सबसे बड़ी सफलता यह रही कि मरीज ऑपरेशन के तुरंत बाद खुद उठकर चलने लगा और दर्द में 70-80 प्रतिशत तक कमी आ गई। काइफोप्लास्टी की खासियत है कि यह ओपन सर्जरी नहीं है, खून ना के बराबर बहता है, और मरीज अगले ही दिन घर जा सकता है। यह तकनीक कैंसर रोगियों को तुरंत राहत और आत्मनिर्भरता देने के लिए बेहद कारगर है।
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