
डिजिटल डेस्क। मध्य प्रदेश में ड्राइवरों की सेहत को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है। भोपाल–इंदौर रोड पर बस, टैक्सी और ऑटो चालकों की सेहत को लेकर भोपाल ट्रैफिक पुलिस की जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इसमें पता चला कि 10 ड्राइवरों में फर्स्ट स्टेज मुंह के कैंसर के लक्षण पाए गए, वहीं करीब एक चौथाई ड्राइवरों में आंखों की दिक्कत देखने को मिली है। यह सड़क सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। हालांकि, अच्छी बात यह है कि पुलिस इन ड्राइवरों का उपचार भी करवा रही है।
बीमारी बनती है हादसों का कारण
भोपाल–इंदौर रूट काफी व्यस्त रूट्स में से एक है। यहां हर घंटे 5 से 6 हजार फोरविलर वाहनों की आवाजाही होती रहती है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि बीमारी के बावजूद ड्राइवर गाड़ी चलाते हैं, जो हादसों का कारण बनती है। इसको लेकर एसीपी ट्रैफिक विजय दुबे का कहना है कि सड़क पर हादसों को रोकने की पहल की गई है। शनिवार को भी यह जांच जारी रखी जाएगी।
ड्राइवरों की सेहत पर चिंता बढ़ी, जांच में सामने आई चौंकाने वाली तस्वीर
ड्राइवरों की आंखों की जांच में कुल 219 लोगों की स्क्रीनिंग की गई। जांच के नतीजों में सामने आया कि लगभग हर चौथा ड्राइवर किसी न किसी विजन संबंधी समस्या से प्रभावित है। करीब 23 प्रतिशत ड्राइवरों को इलाज, चश्मे या आगे की जांच के लिए रेफर करने की जरूरत पड़ी। 50 ड्राइवरों को आई ड्रॉप्स दी गईं, 25 को चश्मा लगाने की सलाह दी गई, जबकि 15 ड्राइवरों में मोतियाबिंद के शुरुआती लक्षण पाए गए। इसके अलावा 22 मामलों में अन्य कारणों से रेफरल किया गया।
दांतों की जांच में हालात और ज्यादा गंभीर
डेंटल ओपीडी में स्थिति और भी चिंताजनक नजर आई। 180 ड्राइवरों की जांच में यह सामने आया कि लगभग 78 प्रतिशत को किसी न किसी प्रकार के दंत उपचार की आवश्यकता है। 40 ड्राइवरों को दांत निकालने की सलाह दी गई, 30 को स्केलिंग की जरूरत बताई गई, जबकि 25 मामलों में रूट कैनाल ट्रीटमेंट जरूरी पाया गया। 28 ड्राइवरों के दांतों में फिलिंग की आवश्यकता सामने आई। चिंता की बात यह रही कि 10 ड्राइवरों में ग्रेड-2 यानी शुरुआती स्तर के कैंसर जैसे लक्षण भी मिले।
आंकड़ों में समझें समस्या की गंभीरता
जांच रिपोर्ट के अनुसार हर चार में से एक ड्राइवर को आंखों से जुड़ा इलाज या रेफरल जरूरी पाया गया। करीब 11 प्रतिशत ड्राइवरों को आई ड्रॉप्स दी गईं और लगभग उतने ही ड्राइवरों को चश्मे की जरूरत पड़ी। करीब 7 प्रतिशत ड्राइवरों में मोतियाबिंद के संकेत मिले, जबकि हर दसवां ड्राइवर रेफरल कैटेगरी में आया।
डेंटल जांच में स्थिति और गंभीर रही। करीब 78 प्रतिशत ड्राइवरों को दांतों के इलाज की जरूरत पाई गई। हर चार में से एक ड्राइवर को दांत निकलवाने की सलाह दी गई, हर सातवां ड्राइवर आरसीटी कैटेगरी में आया, हर छठे ड्राइवर को स्केलिंग की आवश्यकता बताई गई और 15 प्रतिशत से अधिक मामलों में फिलिंग जरूरी पाई गई।
सड़क सुरक्षा से जुड़ा है ड्राइवरों का स्वास्थ्य
विशेषज्ञों का कहना है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट ड्राइवर रोजाना सैकड़ों यात्रियों की जिम्मेदारी उठाते हैं। आंखों की कमजोरी, मोतियाबिंद या दांतों का लगातार दर्द ड्राइवर की एकाग्रता और क्षमता को प्रभावित करता है। लंबी दूरी की ड्राइविंग के दौरान ये समस्याएं दुर्घटनाओं के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। ऐसे में यह साफ है कि सड़क सुरक्षा केवल नियमों और चालान तक सीमित नहीं है, बल्कि ड्राइवरों की सेहत से भी इसका सीधा संबंध है।
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