पहला सुख निरोगी काया...10वें राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस' पर टोल फ्री नंबर - 155258 जारी
आज भी छोटी-छोटी बीमारियों जैसे सर्दी, खाँसी या बुखार के लिए लोग धड़ल्ले से एंटीबायोटिक का उपयोग करते हैं, बिना यह समझे कि उसके कितने दूरगामी दुष्प्रभाव हो सकते हैं। आयुर्वेद को अक्सर लोग अंतिम विकल्प के रूप में चुनते हैं, जबकि यदि इसका सही उपयोग सही समय पर किया जाए तो शरीर को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
Publish Date: Tue, 23 Sep 2025 09:06:29 PM (IST)
Updated Date: Tue, 23 Sep 2025 09:25:16 PM (IST)
आयुर्वेद दिवस पर कार्यक्रम को संबोधित करते सीएम मोहन यादव।HighLights
- छोटी बीमारियों के लिए लोग एंटीबायोटिक का उपयोग करते हैं।
- बिना यह समझे कि उसके कितने दूरगामी दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
- वे आयुर्वेद को अक्सर लोग अंतिम विकल्प के रूप में चुनते हैं।
डिजिटल डेस्क। दसवें आयुर्वेद दिवस पर प्रधानमंत्री से लेकर देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों तक ने आयुष विभाग का दीप प्रज्वलित करने के लिए अनेक नई योजनाओं की घोषणाएँ की हैं। आज पूरा विश्व अंग्रेज़ी दवाओं के अति प्रयोग से शरीर पर पड़े दुष्प्रभावों और घावों को भरने के लिए आयुर्वेद की ओर उम्मीद भरी नज़रों से देख रहा है।
सीएम मोहन यादव ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि भोपाल में '10वें राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस' के अवसर पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम में सहभागिता कर विचार साझा किये। इस अवसर पर "आयुष जन स्वास्थ्य कार्यक्रम" का प्रदेश के समस्त जिलों की 55 इकाइयों में प्रसार तथा औषधीय पौधों की खेती के लिए टोल फ्री नंबर - 155258 का शुभारंभ कर शुभकामनाएं दीं।
कार्यक्रम के दौरान आयुष वेलनेस टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए आयुष एवं पर्यटन विभाग के मध्य MoU का आदान-प्रदान भी हुआ। आयुर्वेद के क्षेत्र में मध्यप्रदेश, आदर्श और अग्रणी राज्य बने, इस दिशा में हमारी सरकार निरंतर कार्यरत है।
आयुर्वेद अंतिम नहीं पहला विकल्प होना चाहिये
- लेखिका एवं आयुर्वेदाचार्य डॉ. भावना पालीवाल का कहना है कि जैसे चीन में अब भी लोग अपनी पारंपरिक चाइनीज़ चिकित्सा पद्धति को प्राथमिकता देते हैं, वैसे ही कोरिया और जापान जैसे देशों में भी अपनी-अपनी स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों को सम्मान और विश्वास प्राप्त है।
- किंतु विडंबना यह है कि भारत की मूल चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद, जो जनसामान्य की है, आज भी जनता से दूर और कठिनाई से पहुँच में आने वाली विधा लगती है।
- आज भी छोटी-छोटी बीमारियों जैसे सर्दी, खाँसी या बुखार के लिए लोग धड़ल्ले से एंटीबायोटिक का उपयोग करते हैं, बिना यह समझे कि उसके कितने दूरगामी दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
- आयुर्वेद को अक्सर लोग अंतिम विकल्प के रूप में चुनते हैं, जबकि यदि इसका सही उपयोग सही समय पर किया जाए तो शरीर को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
- सर्दी-खाँसी-बुखार में जिस तेजी से आधुनिक पद्धति की दवाएँ असर करती हैं, उसी प्रकार आयुर्वेद भी कारगर है। बस आवश्यकता है सही चिकित्सक और सही समय पर मार्गदर्शन की।
- हमारे बच्चों को होलेक्स या केमिकल से भरे प्रोटीन पाउडर देने की बजाय च्यवनप्राश, सुवर्ण प्राशन, जन्म घुटी, ब्रह्म रसायन जैसी आयुर्वेदिक औषधियाँ दी जा सकती हैं।
- एसिडिटी की समस्या में प्रचलित खाली पेट दवाओं को आसानी से शंखवटी, कामदुधा जैसी दवाओं से बदला जा सकता है।
- इसी प्रकार कई अन्य रोगों में भी ऐसी अनेक दवाएँ उपलब्ध हैं जिन्हें एंटीबायोटिक लेने से पहले प्राथमिक विकल्प के रूप में अपनाया जा सकता है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में वास्तविक और सकारात्मक बदलाव तभी संभव है जब आयुर्वेद को "फर्स्ट लाइन ऑफ ट्रीटमेंट" बनाया जाए।
- यह बदलाव न केवल जनता को अनावश्यक रासायनिक दवाओं के दुष्प्रभावों से बचाएगा, बल्कि भारत की इस अनमोल धरोहर को उसका सही स्थान भी दिलाएगा।