
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। सरकार ने 1960 के शासकीय सेवक (अस्थायी एवं अर्ध-स्थायी सेवा) नियम को समाप्त करने का निर्णय लिया है। इसका लाभ यह होगा कि अब प्रदेश के नियमित कर्मचारियों में स्थायी और अस्थायी की श्रेणी नहीं होगी। सभी स्थायी श्रेणी के कर्मचारी होंगे। अस्थायी श्रेणी के समाप्त होने से परिवीक्षा अवधि समाप्त होने के बाद स्थायीकरण में विलंब के कारण वेतनवृद्धि का लाभ मिलने में जो समय लगता था, वह नहीं लगेगा।
स्थायी और अस्थायी कर्मचारी का भेद समाप्त करने का निर्णय वित्त विभाग के प्रस्ताव पर मंगलवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया। वित्त विभाग के अधिकारियों ने बताया कि मंत्रालय सेवा से लेकर लगभग सभी विभागों के मिलाकर नियमित कर्मचारियों के 15 से 20 प्रतिशत तक कर्मचारी अस्थायी श्रेणी के हैं। अभी कई बार प्रतिनियुक्ति के लिए विभागों द्वारा जो आवेदन बुलाए जाते हैं, उनमें यह शर्त लगा दी जाती है कि कम से कम पांच वर्ष नियमित सेवा होना चाहिए। तीन वर्ष के लिए अवकाश लेकर दूसरी सेवा में काम करने का अवसर अभी अस्थायी कर्मचारियों को नहीं मिल पाता है।
अब सीमित अवधि की परियोजनाओं के अतिरिक्त स्थायी और अस्थायी पदों की पात्रता में अधिक अंतर नहीं रह गया है। सेवा शर्तें और सेवानिवृत्ति के बाद की सुविधाओं की स्थिति में कोई अंतर नहीं है। अलग-अलग प्रविधान होने से विभागों को इन्हें लागू करने में कठिनाई भी आती है। समान कार्य समान वेतन होने के बाद स्थायी और अस्थायी के भेद को लेकर कई मामले न्यायालयों में भी चले। इन सब स्थितियों को देखते हुए विभाग ने स्थायी और अस्थायी श्रेणी का भेद समाप्त करना प्रस्तावित किया।
वित्त विभाग ने यह प्रस्ताव भी रखा कि अब निर्माण विभागों के बड़ी काम और परियोजनाओं का क्रियान्वयन विभाग के स्थान पर निर्माण एजेंसियां करती हैं, इसलिए कार्यभारित और आकस्मिकता के पदों की आवश्यकता नहीं है। इन्हें सांख्येतर पद यानी वर्तमान में कार्यरत कर्मचारी की सेवा पूरी होने पर पद समाप्त होने का प्रस्ताव रखा। इस पर सामान्य प्रशासन विभाग ने असहमति जताई।
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इससे उच्च न्यायालय द्वारा प्रचलित नियमितीकरण के आदेशों के फलस्वरूप कर्मचारियों को स्थायी कर्मी घोषित किया जा रहा है। इन पदों को सांख्येतर घोषित करने से न्यायालय के आदेश का पालन करना कठिन होगा लेकिन वित्त विभाग ने तर्क रखा कि सामान्य प्रशासन विभाग के दिशा-निर्देशानुसार पात्र कर्मचारी को स्थायी कर्मी घोषित करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। विचार-विमर्श के उपरांत कैबिनेट की बैठक में वित्त विभाग के प्रस्ताव को स्वीकृति दी गई।
यह भी पढ़ें- IPL 2026 Auction: इंदौर के वेंकटेश अय्यर को लगा करोड़ों का झटका, ₹16.75 करोड़ का हुआ नुकसान, ऑक्शन में RCB ने खरीदा
बैठक में कर्मचारियों की केवल पांच श्रेणियां रखने का निर्णय लिया गया, जो अभी 10 हैं। कार्यभारित, आकस्मिकता, स्थायी वर्गीकृत, विशिष्ट समयावधि और अस्थायी कर्मचारियों की श्रेणियां समाप्त की जाएंगी। नियमित, संविदा, अंशकालिक, आउटसोर्स और स्थायी कर्मी की श्रेणियां रहेंगी। वित्त विभाग का कहना है कि पहले जब योजना और अयोजना मद होते थे, तब स्थायी और अस्थायी नियुक्तियों की व्यवस्था थी। अब यह भेद समाप्त हो गया है, इसलिए श्रेणीकरण का भी कोई औचित्य नहीं रहा। सीमित श्रेणियां होने से प्रबंधन बेहतर होगा।
मध्य प्रदेश कर्मचारी मंच ने कैबिनेट बैठक में लिए गए कर्मचारियों की श्रेणी समाप्त करने के निर्णय को कर्मचारी विरोधी बताया है। प्रदेश अध्यक्ष अशोक पांडे ने सरकार से मांग की है कि पहले अस्थायी, स्थायी, अंश कालीन, दैनिक वेतन भोगी और अन्य समाप्त की गई श्रेणियों में कार्यरत कर्मचारियों को नियमितीकरण का लाभ दिया जाना चाहिए था।
उन्होंने बताया कि मंत्री परिषद में जिन स्थायी कर्मी, अंश कालीन, दैनिक वेतन भोगी, अस्थायी सहित पांच संवर्ग के कर्मचारियों की श्रेणी को समाप्त करने का निर्णय लिया है, वह सरकार और न्यायालय के आदेश पर स्थापित की गई थीं।
कर्मचारियों की श्रेणी एवं संवर्ग समाप्त करने से लाखों कर्मचारी के सेवा अधिकारों का हनन होगा, उनकी नौकरी संकट में पड़ जाएगी। अस्थायी कर्मचारियों को श्रम अधिकारों का लाभ भी नहीं मिलेगा। मंच ने 28 दिसंबर को भोपाल में प्रदेश स्तरीय बैठक आहूत की है। इसमें राज्य सरकार के निर्णय के विरोध में निंदा प्रस्ताव पारित किया जाएगा।