राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में विषाक्त कफ सीरप से छिंदवाड़ा, बैतूल और पांढुर्ना जिलों में 23 बच्चों की मौत से राज्य सरकार ने सबक लिया है। अब सरकारी अस्पतालों में प्रत्येक दवा उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित होने के बाद ही उपलब्ध कराई जाएगी। इसके लिए हर बैच की दवा की पहले जांच कराई जाएगी। जब वह जांच में गुणवत्ता मानकों पर खरी उतरेगी, तभी उसे अस्पतालों में मरीजों को देने के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
अभी की व्यवस्था में दवा स्टोर से औचक तौर पर कुछ दवाओं के सैंपल केंद्र व प्रदेश सरकार की लैब में भेजे जाते हैं। रिपोर्ट आने तक संबंधित बैच की आधे से अधिक दवाएं बंट चुकी होती हैं। अमानक रिपोर्ट होने पर दवाओं को वापस लिया जाता है। सभी बैच की जांच नहीं कराने के पीछे स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का तर्क यह रहता था कि एक कंपनी की खुद की और दूसरी थर्ड पार्टी लैब की जांच रिपोर्ट कंपनी खुद भेजती है, इस कारण दवाएं बांट दी जाती थीं। प्रदेश में पिछले तीन वर्ष में 44 दवाएं अमानक मिल चुकी हैं। किसी दवा में औषधि की मात्रा कम मिली तो किसी को निर्धारित मापदंड के अनुसार लेवल नहीं लगाने के कारण अमानक किया गया। इस आधार पर कारपोरेशन ने निर्धारित समय के लिए दवा की आपूर्ति पर रोक लगा दी है।
एमपी पब्लिक सप्लाई कॉरपोरेशन के मयंक अग्रवाल ने कहा कि पहले वेयरहाउसों में दवाएं रखी जाएंगी। जांच रिपोर्ट आने के बाद ही सरकारी अस्पतालों में रोगियों के लिए उपयोग होंगी। हालांकि, अभी भी एक कंपनी की खुद की लैब और दूसरी कंपनी द्वारा थर्ड पार्टी लैब की रिपोर्ट आने के बाद ही दवाएं बांटी जाती हैं। इसके बाद भी कुछ औचक तौर पर कुछ सैंपलों की जांच हम कराते हैं। अब सभी बैच की हर तरह की दवाओं की जांच होगी।
2023 में 3 दवाएं
2024 में 22 दवाएं
2025 में 19 दवाएं
मध्य प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों से लेकर उप स्वास्थ्य केंद्र तक के लिए प्रतिवर्ष लगभग 150 से अधिक कंपनियों से 500 करोड़ रुपये की दवाएं व उपकरणों की खरीदी की जाती है। स्वास्थ्य संचालनालय, चिकित्सा शिक्षा संचालनालय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की ओर से खरीदी की जाती हैं। दवा, उपकरण व अस्पतालों में उपयोग होने वाले अन्य वस्तुओं की खरीदी के लिए दरें निर्धारित करने का काम एमपी पब्लिक हेल्थ सप्लाई कॉरपोरेशन का है। कारपोरेशन ने दवा खरीदी के लिए 165 कंपनियों से अनुबंध किया है। अन्य सामग्री के लिए अनुबंधित कंपनियों को मिला लें तो यह संख्या 200 से ऊपर पहुंच जाती है।
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मध्य प्रदेश के 60 हजार से अधिक दवा दुकानों से रोगियों की बेची जा रही हजारों तरह की दवाओं की गुणवत्ता की जिम्मेदारी सिर्फ बनाने वाली कंपनी पर छोड़ दी गई है। एमपी के सेवानिवृत वरिष्ठ औषधि निरीक्षक डीएम चिंचोलकर का कहना है कि दवाओं की खरीद-बिक्री में भारत सरकार के औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 में ही यह कमी है कि सीएंडएफ या होल सेलर को कंपनी से दवा या उपकरण के साथ गुणवत्ता जांच रिपोर्ट लेने की बाध्यता ही नहीं है। कंपनी से दवा खरीदने वाले को सिर्फ यह देखना है कि दवा लाइसेंस प्राप्त कंपनी में बनाई गई है या नहीं। औषधि निरीक्षक भी किसी होलसेलर के यहां बिल की जांच कर यही जांचते हैं। इसमें बदलाव मात्र भारत सरकार संसद में कानून बनाकर कर सकती है।
वह बताते हैं कि कंपनी के मैन्युफैक्चरिंग केमिस्ट और एनालिटिकल केमिस्ट की संयुक्त हस्ताक्षर से किसी कंपनी से कोई बैच बाहर निकलता है। इसका मतलब यह कि उन दोनों ने दवा को बाजार में उतारने के पहले गुणवत्ता जांच कर ली है। हां, प्रदेश सरकारें दवा आते ही सैंपलिंग कर जांच से अमानक दवाएं बाजार में पहुंचने से रोक सकती हैं। सीएंडएफ और होलसेलर के यहां से भी दवाओं के सैंपल अधिक से अधिक होने चाहिए।