नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल हमीदिया की इमरजेंसी में अव्यवस्थाएं मरीजों की हालत और बिगाड़ रही हैं। नईदुनिया की टीम ने सोमवार को जब अस्पताल की इमरजेंसी यूनिट का जायजा लिया, तो यहां नजारा बेहद चिंताजनक मिला। गंभीर मरीजों को लाने के लिए परिजनों को खुद स्ट्रेचर ढकेलते देखा गया। वार्ड बॉय की व्यवस्था न के बराबर दिखी।
सीहोर निवासी सुलोचना बाई की हालत बेहोशी की थी। बेटे संजय ने बताया कि मां को स्ट्रेचर पर लाने के लिए दो राहगीरों की मदद लेनी पड़ी, क्योंकि स्टाफ मौजूद ही नहीं था। कटनी से आए रामप्रसाद दुबे को जब इमरजेंसी लाया गया, तो उनके बेटे राजेश दुबे खुद स्ट्रेचर खोजकर लाए और मरीज को धक्का देकर अंदर ले गए। उन्होंने बताया कि स्टाफ से मदद मांगी, लेकिन कोई नहीं आया। यह हालात इमरजेंसी जैसे संवेदनशील स्थान पर बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
इसी बीच एक और चौंकाने वाला पहलू सामने आया। अस्पताल परिसर में निजी एंबुलेंस और बाहरी ऑटो को घुसने नहीं दिया जाता। अशोका गार्डन से आए शुभम खरे ने बताया कि हमने बाहर से एंबुलेंस मंगवाई थी, लेकिन गेट पर गार्ड ने रोक दिया। कहा कि सिर्फ अस्पताल की एंबुलेंस और यहां ऑटो ही मान्य है। इसी प्रकार प्रमोद साहू के रिश्तेदार को रेफर किया गया था।
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हमीदिया की एंबुलेंस संचालक उनसे नोबल अस्पताल जाने के लिए 2000 रुपये मांग रही थे, जबकि बाहर की सेवा 1000 रुपये में तैयार थी। उन्होंने कहा कि गरीब मरीजों के लिए ये दोहरा शोषण है। पहले इलाज के लिए संघर्ष, फिर परिवहन के लिए लूट की जा रही है।
निजी एंबुलेंस चालकों और अस्पताल गार्डों के बीच आए दिन बहस और झगड़े होते हैं। एक चालक ने बताया कि हमें अंदर जाने नहीं दिया जाता, मरीज तड़पते हैं और हम बाहर खड़े रहते हैं। अंदर जाने के लिए अलग से पैसे मांगे जाते हैं।