
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। बदलती जीवनशैली और प्रदूषण के कारण बार-बार छींक आना, नाक बहना या बंद रहना जैसी समस्याएं (एलर्जिक राइनाइटिस) अब आम हो गई हैं। अक्सर लोग इसके लिए केवल पारंपरिक अंग्रेजी दवाओं पर निर्भर रहते हैं, लेकिन एम्स भोपाल के एक ताजा वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, यदि पारंपरिक उपचार के साथ ''होम्योपैथी'' को सहायक चिकित्सा के रूप में जोड़ा जाए तो यह बीमारी से दीर्घकालिक और स्थायी राहत प्रदान कर सकती है।
दो विभागों का साझा शोध यह अध्ययन एम्स भोपाल के आयुष (होम्योपैथी) और ईएनटी विभाग के संयुक्त सहयोग से किया गया। डा. आशीष कुमार दीक्षित और डा. अंजन कुमार साहू के नेतृत्व में हुए इस शोध में मध्यम से गंभीर एलर्जिक राइनाइटिस से पीड़ित 210 मरीजों को शामिल किया गया था। अध्ययन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या होम्योपैथी पारंपरिक दवाओं के असर को बढ़ाने और लक्षणों की पुनरावृत्ति रोकने में सक्षम है।
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अध्ययन के दौरान मरीजों को दो समूहों में बांटा गया। एक समूह को केवल मानक अंग्रेजी दवाएं दी गईं, जबकि दूसरे समूह को इन दवाओं के साथ व्यक्तिगत रूप से चयनित होम्योपैथिक औषधियां भी दी गईं। 12 सप्ताह के इलाज और उसके बाद छह सप्ताह के अवलोकन के बाद चौंकाने वाले परिणाम सामने आए।
जिन मरीजों ने होम्योपैथी को सहायक के रूप में अपनाया, उनमें नाक के लक्षणों (जैसे छींक और खुजली) में केवल मानक उपचार लेने वालों की तुलना में 78 प्रतिशत अधिक कमी दर्ज की गई। वहीं, उनके जीवन की गुणवत्ता में भी 61 प्रतिशत अधिक सुधार देखा गया। सबसे खास बात यह रही कि दवा बंद होने के बाद भी होम्योपैथी लेने वाले समूह में लक्षणों की वापसी बहुत कम हुई।