
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में मतदाता सूची का प्रारंभिक प्रकाशन हो चुका है। 42.74 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम इसमें हटाए गए हैं। शहरी विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या अधिक घटी है। इससे कई विधानसभाओं में राजनीति समीकरण प्रभावित होने की संभावना बन सकती है। उदाहरण के तौर पर भोपाल की गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र में फिलहाल 97,052 हजार मतदाता कम हुए हैं।
यहां पिछला चुनाव भाजपा की कृष्णा गौर 1,06,668 मतों के अंतर से जीती थीं। इसी तरह, नरेला विधानसभा क्षेत्र में 81,235 हजार मतदाता घटे। यहां से भाजपा के विश्वास सारंग 25 हजार मतों के अंतर से जीते। इसका मतलब है कि अब नेताओं ने मतदाताओं का सही नियोजन नहीं किया तो आने वाले चुनाव में इनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। प्रदेश की उन सभी शहरी सीटों की राजनीति प्रभावित हो सकती है, जिन सीटों पर हार-जीत का अंतर पांच या दस हजार से कम रहा है। राजनीतिक दलों को झोंकनी होगी ताकत- एसआइआर के दूसरे चरण में अब 5,31,31,983 मतदाता हैं।
सर्वाधिक 22,78,393 स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए। अलग-अलग श्रेणियों में 42,74,160 मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं। हटाए गए मतदाताओं में अधिकतर शहरी क्षेत्रों के हैं। यही विषय राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों के लिए चिंताजनक है। अब 22 जनवरी तक अधूरे गणना पत्रक भरने वाले मतदाताओं को बुधवार से घर-घर जाकर नोटिस दिए जाएंगे। यदि किसी को अपना नाम जुड़वाने के लिए दावा करना है तो उसे फार्म छह और किसी नाम पर आपत्ति है तो फार्म सात भरना होगा।
यह प्रक्रिया 22 जनवरी 2026 तक चलेगी। मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 21 फरवरी को होगा। राजनीतिक दलों और स्थानीय विधायकों को इस चरण में पूरी ताकत झोंकनी पड़ेगी। जिन मतदाताओं को नोटिस जारी हुआ है, उनसे संपर्क कर नोटिस का जवाब दिलाना होगा। मतदाताओं का सही नियोजन नहीं किया तो कम हार-जीत वाली शहरी सीटों के राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं।
जिन विधानसभाओं में बहुत अधिक संख्या में मतदाता कम हुए हैं, उन पर जीत के लिए अब इन नेताओं ने मतदाताओं का सही नियोजन नहीं किया तो आने वाले चुनाव में इनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। एसआइआर के परिणामों से प्रदेश की उन सभी शहरी सीटों की राजनीति प्रभावित हो सकती है, जिन सीटों पर हार-जीत का अंतर पांच या दस हजार से कम रहा है। आने वाले चुनाव में इन सीटों पर समीकरण बदल भी सकते हैं। इसकी वजह यह है कि शहरी क्षेत्रों में गणना पत्रक कम भरे गए हैं जबकि गांव में अधिक। जो मतदाता गांव से शहर में आए हैं, वे अपना स्थायी नाम वहीं रखना चाहते हैं।
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